
पति के अधिवक्ता राजेंद्र उपाध्याय ने बताया कि उसके मुव्वकिल का विवाह अप्रैल 2016 में उक्त युवती से हुआ था। शादी के बाद जब पति को गर्भाधारण की बात पता चली तो डॉक्टर को दिखाया गया। डॉक्टर ने बताया कि युवती को 32 सप्ताह मतलब 8 महीने का गर्भ है, जबकि विवाह को केवल 4 महीने ही हुए थे। जिसके चलते युवक द्वारा न्यायालय के समक्ष विवाह को शून्य करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया था।
मामले में कई डॉक्टरों की गवाही एवं तर्कों के बाद आखिरकार न्यायालय ने माना कि विवाह के पूर्व ही युवती गर्भवती थी, इसलिए न्यायालय ने इस विवाह को ही शून्य घोषित कर दिया। इधर युवती द्वारा न्यायालय के समक्ष पति से भरण-पोषण की राशि दिलाने के लिए आवेदन किया था, लेकिन न्यायालय ने कहा कि युवती भरण-पोषण की अधिकारिणी नहीं है, क्योंकि न्यायालय इस विवाह को ही शून्य घोषित कर दिया है।