
मामला सीआरपीएफ की महिलाकर्मी शर्मिला यादव का है। उन्होंने असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर के पद के लिए विभागीय परीक्षा दी थी। उसे पास भी कर लिया लेकिन 2011 में जब प्रमोशन लिस्ट आई तो उसमें उनका नाम ही नहीं था। आरोप है कि उन्हें मेडिकल लेवल पर अयोग्य घोषित कर दिया गया क्योंकि वो प्रेग्नेंट थी। उनकी जगह किसी और को प्रमोशन दे दिया गया।
शर्मिला ने दायर की याचिका
शर्मिला ने भेदभाव के खिलाफ कोर्ट में एक याचिका दायर कर दी। जिसके बाद कोर्ट ने सीआरपीएफ को जमकर फटकार लगाई और प्रमोशन पर लगाई रोक को रद्द करने का ऑर्डर दिया। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और नवीन चावला ने कहा कि गर्भवती होने के आधार पर भेदभाव कर प्रमोशन रोकना एक घिनौनी मानसिकता है। ये लिंग के आधार पर भेदभाव करने जैसा है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा करना सिद्धांतों का उल्लंघन है। महिला का हक है कि वो ड्यूटी के दौरान भी मां बन सकती है और ऐसी स्थिति में विभाग उसके साथ भेदभाव नहीं कर सकता है।