राकेश दुबे@प्रतिदिन। मध्यप्रदेश सरकार भी उत्तरप्रदेश के माडल पर अपने यहाँ की परीक्षाओं में नकल रोकने की तैयारी कर रही है, परन्तु नकल रोकने के जो परिणाम उत्तर प्रदेश में सामने आये हैं, वैसे परिणाम का अंदेशा सरकार के निर्णय में बाधा बन रहा है दो साल पहले उत्तर प्रदेश में तकरीबन साढ़े सात लाख छात्रों ने परीक्षा छोड़ दी थी। तब कहा गया था कि यूपी बोर्ड के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ। इस साल अब तक सवा दस लाख से ज्यादा बच्चों ने यूपी बोर्ड की परीक्षाओं से किनारा कर लिया है। परीक्षार्थी की संख्या मे कमी से मध्यप्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल वैसे ही गुजर रहा है। उत्तर प्रदेश से आ रही खबरें यहाँ निर्णय नहीं होने दे रही हैं।
उत्तर प्रदेश का सरकारी अनुमान है कि वहां दस मार्च तक चलने वाली इन परीक्षाओं से जान छुड़ाने वालों की तादाद अभी और बढ़ेगी। इधर-उधर से आ रहे सरकारी बयानों का सार-संक्षेप यही है कि बच्चे बोर्ड इम्तहान इसलिए छोड़ रहे हैं क्योंकि इस बार सख्ती ज्यादा है। जिन कमरों में उन्हें परीक्षा देनी है, उनमें सीसीटीवी कैमरे लगे हैं, जबकि बाहर पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स तैनात है।रहा सवाल नकल का तो यह पहले से कुछ कम जरूर हुई है, लेकिन बिलकुल रुक गई हो, ऐसी कोई सूचना नहीं है।
नकल रोकने के चक्कर में यूपी बोर्ड ने बच्चों के सामने कुछ दूसरी मुसीबतें भी खड़ी कर दी हैं। जैसे, इस बार ७० हजार से अधिक बच्चे परीक्षा महज इसलिए नहीं दे पा रहे हैं, क्योंकि बोर्ड ने उन्हें प्रवेश पत्र ही नहीं दिया। जिन्हें प्रवेश पत्र मिला, उनमें से कुछ को गलत मिला, जिसके चलते उन्हें परीक्षा में बैठने नहीं दिया गया। बाकी छात्र तरह-तरह की अफवाहों के शिकार हो गए। जैसे, सबसे आम अफवाह यह है कि सिर जरा सा भी घूमा तो तुरंत थाने में केस दर्ज हो जाएगा। इससे बच्चे बुरी तरह डर गए हैं और उनकी उम्र में यह खासा बड़ा डर भी है। उत्तर प्रदेश हो या मध्यप्रदेश परीक्षा छोड़ने वालों ने इसकी आम तौर पर एक ही वजह बताई है कि उनकी तैयारी नहीं थी। यह सही है कि इम्तहान की तैयारी उन्हें ही करनी होगी, लेकिन तैयारी कराएगा कौन? मां-बाप बच्चों को पढ़ाने के लिए जितने जतन करते हैं, उसके बाद उनसे यह उम्मीद तो नहीं की जा सकती कि वे खुद सारे विषय पढ़ा भी दें। यह काम शिक्षकों का और पूरी माध्यमिक शिक्षा व्यवस्था का है, जिसकी नाकामी पर इम्तहान छोड़ने वाले बच्चों की मुहर लग चुकी है।
नकल रोकने के लिए कड़ाई अच्छी बात है, लेकिन पहले पढ़ाई तो हो। प्रदेश सरकारों को चुनावी चक्करों से ही फुरसत नहीं मिलती। शिक्षकों का गैर शेक्षणिक कार्यों में किसी न किसी बहाने प्रयोग आम ढर्रा हो गया है। जब तक यह ढर्रा नहीं सुधरेगा शैक्षणिक सुधार के परिणाम नहीं दिखेंगे।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।