जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में साफ किया कि कोई भी शासकीय कर्मी अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक प्रकरण में अदालत से दोषमुक्ति के बाद भी तत्संबंध में विभागीय जांच रिपोर्ट के आधार पर तय की गई सजा से बच नहीं सकता। मुख्य न्यायाधीश हेमंत गुप्ता व जस्टिस विजयकुमार शुक्ला की युगलपीठ ने उक्त न्यायिक सिद्घांत स्थापित करने के साथ सेंट्रल बैंक ऑफिसर्स ट्रेनिंग कॉलेज भोपाल के बर्खास्त प्राचार्य आरके सोलंकी की रिट अपील खारिज कर दी।
इससे पूर्व हाईकोर्ट की एकलपीठ ने 8 सितम्बर 2016 को पारित आदेश के जरिए अपीलकर्ता की याचिका खारिज कर दी थी। लिहाजा, रिट अपील के जरिए युगलपीठ की शरण ली गई। मामला 2010 में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के प्रशिक्षु अधिकारियों के ट्रेनिंग प्रोग्राम के दौरान अपीलकर्ता द्वारा अमर्यादित व्यवहार और ड्रेस कोर्ड का पालन न किए जाने के रवैये को गंभीरता से लेकर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई किए जाने से संबंधित था।
एक महिला प्रशिक्षु से प्राचार्य पर अश्लील आचरण का आरोप लगाते हुए पुलिस में प्रकरण भी दर्ज करा दिया था। चूंकि प्राचार्य को क्रिमनल केस में दोषमुक्ति मिल गई अतः उसने विभागीय जांच के आधार पर दी गई सजा को निरस्त किए जाने पर बल दिया था। हाईकोर्ट की युगलपीठ ने एकलपीठ के पूर्व आदेश को यथावत रखते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ अपील खारिज कर दी।