
श्री मिश्रा ने यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी ने आंखे मूंद कर सीबीआई पर अतिविश्वास करते हुए सर्वोच्च न्यायालय से व्यापमं महाघोटाले की जांच कराये जाने का अनुरोध किया था, जो हमारी बहुत बड़ी भूल थी, क्योंकि जिस तरह से राजनैतिक दबाव के वशीभूत होकर सीबीआई की जांच में बड़े मगरमच्छों को संरक्षण और क्लीनचिट दी जा रही है, उसके कारण उसकी धूमिल हो रही प्रतिष्ठा और सामने आ रहे अविश्वास को देखते हुए कांग्रेस की अब यह मांग लाजमी है कि अब व्यापमं महाघोटाले की जांच ‘‘होमगार्ड’’ को सौंप देना चाहिए, ताकि 1 लाख 72 हजार करोड़ रूपयों के कर्ज से दबी आम जनता की गाढ़ी कमाई का वह खर्च जो सफेद हाथी के रूप में सीबीआई को पालने के लिए किया जा रहा है, उससे मुक्ति मिल सके और बड़े मगरमच्छों के साथ उन छोटी मछलियों का भी भला हो सके, जिन्होंने व्यापमं महाघोटाले के रूप में 1 लाख 40 हजार नौजवानों की जिंदगी के आगे हमेशा-हमेशा के लिए अंधेरा परोस दिया है। यदि बड़े मगरमच्छों को ही बचाना ही सीबीआई का संवैधानिक धर्म बन चुका है तो छोटी मछलियों को ही सजा क्यों?
श्री मिश्रा ने सीबीआई से यह भी जानना चाहा है कि गुरूवार को विशेष अदालत में प्रस्तुत चालान में तत्कालीन मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा, व्यापमं परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी, नितिन महेन्द्र, ओ.पी. शुक्ला, सुधीर शर्मा सहित 87 आरोपियों को जब नामजद किया गया है, जिसमें 33 नये आरोपी भी बनाये गये हैं और यदि तत्कालीन जांच एजेंसी एसटीएफ द्वारा दर्ज एफआईआर, सीडीआर और उपलब्ध आधारों के बावजूद भी सीबीआई की निगाह में सुश्री उमा भारती निर्दोष हैं, तो सुश्री भारती के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज करने वाले पूर्व जांच एजेंसी एसटीएफ के विवचना अधिकारी के खिलाफ भादवि की धारा 182, 211 के तहत प्रकरण दर्ज होना चाहिए अथवा नहीं?