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शकुंतला एक्सप्रेस पहली बार 2014 में और दूसरी बार अप्रैल 2016 में बंद किया गया था। मगर, स्थानीय लोगों की मांग और सांसद आनंद राव के दबाव में सरकार को फिर से इसे शुरू करना पड़ा। राव का कहना है कि, यह ट्रेन अमरावती के लोगों की लाइफ लाइन है। उन्होंने इसे ब्रॉड गेज में कन्वर्ट करने का प्रस्ताव भी रेलवे बोर्ड को भेजा है। भारत सरकार ने इस ट्रैक को कई बार खरीदने का प्रयास भी किया, लेकिन तकनीकी कारणों से वह संभव नहीं हो सका। आज भी इस ट्रैक पर ब्रिटेन की कंपनी का कब्जा है। इसके देख-रेख की पूरी जिम्मेदारी भी इसपर ही है। हर साल पैसा देने के बावजूद यह ट्रैक बेहद जर्जर है। रेलवे सूत्रों का कहना है कि, पिछले 60 साल से इसकी मरम्मत भी नहीं हुई है। सात कोच वाली इस पैसेंजर ट्रेन में रोजाना एक हजार से ज्यादा लोग यात्रा करते हैं।
बताते चलें कि अमरावती से कपास मुंबई पोर्ट तक पहुंचाने के लिए अंग्रेजों ने इस ट्रैक का निर्माण करवाया था। साल 1903 में ब्रिटिश कंपनी क्लिक निक्सन की ओर से शुरू किया गया रेल ट्रैक को बिछाने का काम 1916 में पूरा हुआ। 1857 में स्थापित इस कंपनी को आज सेंट्रल प्रोविन्स रेलवे कंपनी के नाम से जाना जाता है। साल 1951 में भारतीय रेल का राष्ट्रीयकरण करने के बावजूद सिर्फ यही रूट भारत सरकार के अधीन नहीं था।
100 साल पुरानी 5 डिब्बों की इस ट्रेन को 70 साल तक स्टीम का इंजन खींचता था, जिसे 1921 में ब्रिटेन के मैनचेस्टर में बनाया गया था। हालांकि, 15 अप्रैल 1994 को शकुंतला एक्प्रेस के स्टीम इंजन की जगह डीजल इंजन का इस्तेमाल किया जाने लगा। इस रेल रूट पर लगे सिग्नल आज भी ब्रिटिशकालीन हैं। इनका निर्माण इंग्लैंड के लिवरपूल में 1895 में हुआ था।