नई दिल्ली। भारत में केंद्र और राज्य सरकारों की यह पहली जिम्मेदारी है कि वो अपने नागरिकों को जीवन की मूलभूत जरूरतों के अलावा HEALTH और EDUCATION के साधन उपलब्ध कराए परंतु सरकारें इन दिनों केवल TENDER जारी कर रहीं हैं। नतीजा सरकारी SCHOOL और HOSPITALS कबाड़ हो गए हैं और लोगों को प्राइवेट अस्पतालों में जाना पड़ता है। यहां मरीजों के परिजनों को चंगुल में फंसाया जाता है और फिर शुरू होती है खुली लूट। नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NATIONAL PHARMACEUTICAL PRICING AUTHORITY) की रिपोर्ट में यह खुलासा हो गया है कि अस्पतालों में 15 रुपए वाला इंजेक्शन 5 हजार रुपए में लगाया गया और इस पर भी टैक्स अलग से वसूले गए।
नई दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्थित चार प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों से गैरअधिसूचित दवाओं और डायग्नोस्टिक सेवाओं पर 1192 प्रतिशत तक की प्राॅफिट मार्जिन वसूली जा रही है। यहां तक कि 14.70 रुपए के इंजेक्शन पर एमआरपी 189.95 रुपए लिखा होता है और अस्पताल ने इस इंजेक्शन पर मरीज से 5,318.60 रुपए वसूल किए। इसमें टैक्स शामिल नहीं है। यह जानकारी दवा मूल्य नियामक राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) के एक विश्लेषण से सामने आई है।
हालांकि एनपीपीए ने अस्पतालों का नाम सार्वजनिक नहीं किया है। एनपीपीए के अनुसार बीआई वाल्व जीएस-3040 पर भी मार्जिन बहुत ज्यादा है। अस्पतालों ने इस उपकरण को 5.77 रु. में खरीदा और 1737 % की मार्जिन पर मरीजों काे बेचा। लो ब्लड प्रेशर जैसे इमरजेंसी के मरीजों को दी जाने वाली दवाओं पर अस्पताल 1192% तक की प्रॉफिट मार्जिन वसूलते हैं। टुडेसेफ एक एमजी इंजेक्शन को अस्पताल 40.32 में खरीदते हैं। इस पर एमआरपी 430 लिखा होता है और मरीज को इसका 860 रु. का बिल दिया गया। एनपीपीए ने कहा है कि अधिकांश प्राइवेट अस्पतालों में दवा स्टोर हैं, वे बड़े प्रॉफिट मार्जिन पर दवा बेचते हैं।