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शशि ने फिल्म में दुनिया भर के दोस्तों के साथ आखिर इंग्लिश सीखकर बोलकर सबकी आंखों में पानी ला दिया था। इस सोद्श्यपूर्ण फिल्म के साथ श्रीदेवी का यह सफर मॉम तक जारी रहा मगर करोड़ों प्रशंसकों को छोड़कर श्रीदेवी के यूं चले जाने से एक शून्य बना है। भारतीय समाज में प्रेरक फिल्मों के लिए बॉलीबुड ने कभी चुलबुला तो कभी धीर गंभीर दिखने वाला अपना एक अलहदा स्टार हमेशा के लिए खो दिया है।
15 साल बाद बॉलीवुड के पर्दे पर दिखने वाली श्रीदेवी फिल्मों से सामाजिक बदलाव की अगुआ बनकर सामने आ रहीं थीं। उनकी अभिनय क्षमता तो कई सालों पहले सदमा के रुप में पूरा देश देख चुका था मगर बीच के कालखंड में श्रीदेवी का फिल्मी कैरियर व्यावसायिक फिल्मों की चकाचौंध से घिरा रहा। तब निर्देशकों की महिला केन्द्रित फिल्मों में अरुचि भी इसका एक कारण था। अपने करियर में बेटियों की परवरिश के कारण 15 सालों तक फिल्मों से दूर रहीं श्रीदेवी ने बाद में इस अधूरेपन को पहचान लिया था। वे जान गईं थीं कि फिल्में मनोरंजन के अलावा भी बहुत कुछ कर सकती हैं। उनकी यह सोच कमबैक फिल्म इंग्लिश विग्लिश में रचनाधर्मी निर्देशिका गौरी शिन्दे ने साकार की।
100 से लेकर 500 करोड़ क्लब फिल्मों के दौर में एक 50 पार अभिनेत्री को केन्द्रीय भूमिका में रखना बॉक्स ऑफिस का गणित लगाने वाले निर्देशक नहीं कर सकते। एकता कपूर, करण जौहर से लेकर रोहित शेट्टी के युग में गौरी शिन्दे जैसी निर्देशिका बधाई की पात्र हैं जिन्होंने श्रीदेवी के अभिनय के चरम को उनके उत्तरार्ध में सिनेप्रेमियों के समक्ष प्रस्तुत किया। इंग्लिश विंग्लिश को देखकर हर कोई कह सकता है कि यह फिल्म सिर्फ और सिर्फ श्रीदेवी कर सकती थीं। श्रीदेवी ने अपनी इस फिल्म में एक प्रौढ़ मां शशि को मासूमियम के साथ जिया था। इस फिल्म में नोन इंग्लिश स्पीकिंग मां शशि के रुप में श्रीदेवी का किशोरवय बेटी के अंग्रेजी भाषी प्रिंसीपल से संवाद उनकी विलक्षण अभिनय क्षमता का दस्तावेज है।
इन सोद्देश्यपूर्ण फिल्मों के अलावा 54 साल की श्रीदेवी सिनेमा के सशक्त मंच से बहुत कुछ सिखा सकती थीं मगर ये क्लास अधूरी रह गई। खुद आंत्रप्रन्योर रहते हुए इंग्लिश विंग्लिश सीखने वाली श्रीदेवी हिन्दुस्तानी समाज की क्लास को अधूरा छोड़कर अचानक चलीं गईं।
अलविदा शशि.............अलविदा देवकी...................। आपके लड्डूओं की खुशबू और खटाखट इंग्लिश की खनक हम हमेशा याद करते रहेंगे।