श्रीमद् डांगौरी//नई दिल्ली। संगठन को अपना जीवन देने वाले, योग्य, सफल और व्यवहार कुशल दत्तात्रेय होसबोले को लगातार दूसरी बार लास्ट मिनट पर रिजेक्ट किया गया। सब जानते हैं कि नागपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रतिनिधि सभा में शनिवार को जो हुआ वो चुनाव नहीं था। एक फैसला था जो भीतर से आया और उसके अनुरूप औपचारिक नाट्य रूपांतरण किया गया। भैयाजी जोशी जो 3 साल पहले से रिटायरमेंट मांग रहे हैं, उन्हे फिर से आरएसएस की पॉवर नंबर 2 पर प्राणप्रतिष्ठित कर दिया गया। सवाल यह है कि ऐसा क्यों ? क्या संघ में अब कोई शेष नहीं जो सरकार्यवाह की जिम्मेदारी संभाल सके।
70 साल के भैयाजी जोशी चौथी बार सरकार्यवाह बनाए गए हैं। पहली बार वो इसके योग्य थे, दूसरी बार उनका कोई विकल्प ही नहीं था लेकिन तीसरी बार और फिर चौथी बार ? ये सामान्य नहीं है। इसे सामान्य नहीं कह सकते। यह अनुशासन नहीं है, यहां लोकतंत्र नहीं है। कुछ तो है जो असामान्य है। शायद कोई राजनीति, कोई गुटबाजी या कोई तानाशाही। इन सवालों के जवाब संघ के स्वयंसेवकों से लेकर राजनीति से जुड़ा हर व्यक्ति तलाश रहा है। जानना चाहता है कि आखिर भीतर की सच्चाई क्या है।
शनिवार को दोपहर 3.40 बजे सरकार्यवाह के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई। मध्य क्षेत्र के अशोक सोनी को चुनाव अधिकारी बनाया गया। पश्चिम क्षेत्र के जयंती भाई भदेसिया ने भैयाजी के कार्यकाल में जो काम हुए उसका उल्लेख करते भैयाजी जोशी का नाम फिर से सरकार्यवाह के लिए प्रस्तावित किया। उसके बाद जयंती भाई भदेसिया के प्रस्ताव का विरेंद्र सिंह पराक्रमदित्य, दक्षिण क्षेत्र रजेंद्रन, विठ्ठल जी और उमेश चक्रवर्ती ने समर्थन किया। भैयाजी जोशी के अलावा किसी और उम्मीदवार का नाम प्रस्तावित ही नहीं किया गया।
मर्जी के बिना उन्हे चुन लिया गया
पिछली बार की ही तरह भैयाजी जोशी ने सरकार्यवाह के चुनाव में भावुक भाषण दिया और कहा कि दो बार से मैं कह रहा हूं कि मुझे इस जिम्मेदारी से मुक्त किया जाए और यंग ब्लड को आगे लाकर जिम्मेदारी दी जाये। तब आप लोगों ने मेरी बात को नहीं माना लेकिन इस बार मान लीजिए. लेकिन भैयाजी जोशी के कहने के बाद भी प्रतिनिधि सभा ने सर्वसम्मति से उनको ही सरकार्यवाह चुना।
2015 से बीमार चल रहे हैं भैयाजी
2015 में प्रतिनिधि सभा की बैठक में सरकार्यवाह के चुनाव के समय भैयाजी जोशी के स्वास्थ को लेकर संघ के वरिष्ठ नेताओं को चिंता थी लेकिन उसके बावजूद, उन्हें ही तीसरी बार सरकार्यवाह की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।
दत्तात्रेय को रोकने का यही विकल्प था ?
सूत्रों की मानें तो संघ के कुछ नेता चाहते थे कि इस बार दत्तात्रेय होसबोले को सरकार्यवाह की जिम्मेदारी दी जाए। देश भर की मीडिया इसका ऐलान कर चुकी थी। संघ के हर स्वयं सेवक दत्तात्रेय की कहानियां सुनाने लगा था कि तभी फैसला पलट गया। अब बताया जा रहा है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत और संघ के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारी चाहते थे कि दत्तात्रेय को अभी अवसर नहीं दिया जाना चाहिए। किसी दूसरे का नाम आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था। केवल भैयाजी ही थे जिनके नाम पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होगी।
भागवत नहीं चाहते जैसा सुदर्शन के साथ हुआ, वैसा उनके साथ भी हो
सूत्रों की मानें तो संघ के कई नेताओं का मानना है कि सहसरकार्यवाह दत्रात्रेय होसबोले को सरकार्यवाह की ज़िम्मेदारी दी तो वो वैसी ही परिस्तिथि पैदा होगी जैसी अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के समय में केसी सुदर्शन संघ प्रमुख और मोहन भागवत सरकार्यवाह के रहते समय आयी थी। सुदर्शन पद में बड़े जरूर थे, लेकिन वो उम्र और तजुर्बे में कम थे। इस बार संघ नहीं चाहता था कि दोबारा ऐसी समस्या खड़ी हो।