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आम मामलों की तरह लापरवाही करती है पुलिस
प्रोटेक्सन आॅफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस (पॉक्सो) एक्ट के तहत दर्ज होने वाले मामलों में विशेष निर्देश दिए गए हैं परंतु पुलिस इन मामलों को भी आम मारपीट के मामलों की तरह लेती है और केस फाइल करने, गवाहों को प्रस्तुत करने में काफी समय लगा लेती है। सरकारी लापरवाहियों के कारण तारीखें बढ़ती रहतीं हैं।
जानकारी जुटाकर, समाधान निकालेंगे: सुप्रीम कोर्ट
वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने एक आठ महीने की बच्ची के रेप के मामले में याचिका दायर की। इसमें नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2016 की रिपोर्ट का हवाला देकर पेंडिंग केसों की स्थिति के बारे में बताया। जस्टिस दीपक मिश्रा,जस्टिस एएम खानविल्कर और डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने याचिका को संज्ञान में लेकर इन केसों की जानकारी जुटाकर, समाधान निकालने की बात कही है। बेंच ने देश के हाईकोर्ट्स से 4 हफ्तों में पॉक्सो एक्ट के पेंडिंग केसों की रिपोर्ट तलब की है।
6 महीने में फैसला सुनाए जाने की मांग
याचिका में मांग की गई कि 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ रेप के मामलों में रिपार्ट दर्ज होने के 6 महीने के अंदर मामले में फैसला सुनाया जाए। अभी तक पॉक्सो एक्ट में रिपोर्ट दर्ज होने के बाद कोर्ट में चार्जशीट दाखिल होने के एक साल के अंदर फैसला सुनाना होता है।
अगली सुनवाई 20 अप्रैल को होगी
मामले में अगली सुनवाई 20 अप्रैल को होगी। बता दें कि वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने जिस मामले को लेकर याचिका दायर की है, उसमें केंद्र सरकार कोर्ट को बता चुकी है कि बच्ची से रेप के मामले में एफआईआर दर्ज की जा चुकी है। आरोपी न्यायिक हिरासत में है।