वासंती नवरात्र रविवार से शुरू हो रहा है। शनिवार को महालया है। मान्यताएं हैं कि महालया पर देवलोक के सभी देवी-देवता पृथ्वी लोक पर आकर माता जगदंबा के आगमन का आह्वान करते हैं। उसके अगले दिन चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा पर कलश स्थापन के साथ नवरात्र शुरू हो जाएगा। वासंती नवरात्र के लिए जिले के दुर्गा मंदिरों में जोर-शोर से की तैयारियां जा रही हैं। शहर के शक्ति मंदिर, खड़ेश्वरी मंदिर, सर्वेश्वरी आश्रम मंदिर, बिनोद नगर के मनोकामना मंदिर, बेकारबांध मंदिर आदि में विशेष आयोजन होंगे। इन मंदिरों को रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया जा रहा है।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
पंडित सुधीर पाठक का कहना है कि चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा पर दिनभर सर्वसिद्धि योग का संयोग बन रहा है। प्रतिपदा शनिवार की शाम 6:08 बजे शुरू होगी और रविवार शाम 6:08 बजे तक है। दिनभर प्रतिपदा तिथि भोग कर रही है। इसलिए श्रद्धालु दिनभर कलश स्थापन कर सकते हैं। वैसे हिंदू पंचांगों में कलश स्थापन के लिए दो बहुत शुभ मुहूर्त हैं- सूर्योदय काल से दिन के 11 बजे तक ब्रह्म मुहूर्त और फिर उसके बाद दोपहर 12:40 बजे तक अभिजीत मुहूर्त। शास्त्रों में पूजा के लिए ब्रह्म मुहूर्त को सर्वोत्तम माना गया है।
ज्योतिष विज्ञान में तीन स्वयंसिद्धि योग :सुधीर पाठक का कहना है कि ज्योतिष विज्ञान में तीन तिथियों को स्वयंसिद्धि योग माना गया है - चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, बैसाख शुक्ल पक्ष तृतीया और आश्विन नवरात्र की विजयादशमी। कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा और दीपावली पर प्रदोष बेला को भी स्वयंसिद्धि योग माना गया है। इस अवसर पूजन या कोई नया काम शुरू करना शुभ माना गया है।
आठ दिनों का नवरात्र, एक ही दिन अष्टमी और नवमी
इस बार नवरात्र आठ दिनों का ही है। अष्टमी और नवमी तिथि एक दिन पड़ रही है। शनिवार सुबह 9:27 बजे से अष्टमी शुरू हो जाएगी, जो रविवार सुबह 7:04 बजे तक रहेगी। उसके बाद सोमवार तड़के 4:39 बजे तक नवमी तिथि होगी। उदया तिथि के अनुसार रविवार को अष्टमी पड़ रही है, लेकिन नवमी तिथि का लोप है। इसलिए रविवार को ही अष्टमी और नवमी तिथि का दुर्गा पाठ किया जाएगा। भगवान राम का जन्मोत्सव, रामनवमी भी रविवार को ही मनाया जाएगा।
किस दिन कौन तिथि :
प्रतिपदा तिथि : शनिवार शाम 6:08 बजे से रविवार शाम 6:08 बजे तक।
द्वितीया तिथि : रविवार शाम 6:09 बजे से सोमवार शाम 5:41 बजे तक।
तृतीया तिथि : सेामवार शाम 5:42 बजे से मंगलवार शाम 4:41 बजे तक।
चतुर्थी तिथि : मंगलवार शाम 4:42 बजे से बुधवार शाम 3:21 बजे तक।
पंचमी तिथि : बुधवार शाम 3: 22 बजे से गुरुवार दोपहर 1: 39 बजे तक।
षष्टी तिथि : गुरुवार दोपहर 1:40 बजे से शुक्रवार दोपहर 1:39 बजे तक ।
सप्तमी तिथि : शुक्रवार दोपहर 1:40 बजे से शनिवार सुबह 9: 26 बजे तक।
अष्टमी तिथि : शनिवार सुबह 9: 27 बजे से रविवार सुबह 7:04 बजे तक
नवमी तिथि : रविवार सुबह 7:05 बजे से सोमवार की सुबह 4: 39 बजे तक।
दशमी तिथि : सोमवार सुबह 4: 40 बजे से सेामवार रात 2:16 बजे तक।
कलश स्थापना व पूजा विधि
हिन्दू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है. माता की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता के अनुसार, कलश को भगवान श्विष्णु का प्रतिरुप माना गया है. इसलिए सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है. कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिए. पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है.
कलश में हल्दी को गांठ, सुपारी, दूर्वा, मुद्रा रखी जाती है और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है. इस कलश के नीचे बालू की वेदी बनाकर कर जौ बौये जाते है. जौ बोने की इस विधि के द्वारा अन्नपूर्णा देवी का पूजन किया जाता है. जोकि धन-धान्य देने वाली हैं. तथा माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित कर रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण और सुहाग से माता का श्रृंगार करना चाहिए.
साथ ही माता जी को प्रातः काल फल एवं मिष्ठान का भोग और रात्रि में दूध का भोग लगाना चाहिए और पूर्ण वाले दिन हलवा पूरी का भोग लगाना चाहिए. इस दिन से 'दुर्गा सप्तशती' अथवा 'दुर्गा चालीसा' का पाठ प्रारम्भ किया जाता है. पाठ पूजन के समय अखंड दीप जलाया जाता है जोकि व्रत के पारण तक जलता रहना चाहिए.
कलश स्थापना के बाद, गणेश जी और मां दुर्गा की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है. कलश स्थापना के दिन ही नवरात्रि की पहली देवी, मां दुर्गा के शैलपुत्री रूप की आराधना की जाती है. इस दिन सभी भक्त उपवास रखते हैं और सायंकाल में दुर्गा मां का पाठ और विधिपूर्वक पूजा करके अपना व्रत खोलते हैं.