
सूत्रों का कहना है कि प्रदेश में निगम-मंडल, सहकारिता, बैंक, निजी क्षेत्र सहित मजदूर जिनका कर्मचारी भविष्य नि अंशदान कटता है, ऐसे लोगों की संख्या लगभग 33 लाख है। ईपीएफओ 1 सितंबर 2014 के बाद सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों को पेंशन सुविधा का लाभ देने से इंकार कर रहा है। बताया जाता है कि ईपीएफओ ने इस मुद्दे पर कर्मचारियों से विकल्प मांगा था, लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया।
इधर, कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें इस संबंध में ईपीएफओ की तरफ से कोई सूचना नहीं मिली। कर्मचारी पेंशन मुद्दे का सभी राज्यों में विरोध हो रहा है, केरल हाई कोर्ट में इस मामले पर 26 मार्च को फैसला सुनाया जाना है। निवृत्त कर्मचारी 1995 राष्ट्रीय समन्वय समिति के राष्ट्रीय उप महासचिव चंद्रशेखर परसाई ने बताया कि विकल्प न देने पर ईपीएफओ पेंशन देने से इंकार कर चुका है। इस मामले में संगठन की ओर से केन्द्रीय मंत्री को ज्ञापन भी सौंपा गया है। फिलहाल केरल हाईकोर्ट से आने वाले निर्णय पर सबकी नजरें केंद्रित हैं।
देशभर में 65 सौ लोगों को ही दे रहे लाभ
ईपीएफओ में नियमित तौर पर अंशदान जमा कर रहे कर्मचारियों का कहना है कि ईपीएफओ से सूचना के अधिकार के तहत निकली जानकारी में बताया गया है कि देशभर में 6500 लोगों को पेंशन योजना का लाभ मिल रहा है, इसलिए बाकी सभी को यह सुविधा दी जानी चाहिए। मप्र में भविष्य नि पेंशन के करीब साढ़े तीन लाख पेंशनर्स हैं। इनमें से केवल राजधानी भोपाल में ही 30 हजार पेंशनर्स हैं।
नहीं तो हाई कोर्ट जाएंगे
पेंशन के लिए नए नियमों के तहत ईपीएफओ 1 सितंबर 2014 के पहले के एक साल के वेतन का औसत निकालता है, जबकि इसके बाद वालों के लिए 60 महीने का औसत वेतन निकालने का प्रस्ताव है। इससे पेंशन कम बनने की आशंका है। परसाई ने बताया कि हाल ही में उनके संगठन की ओर से दिल्ली में ईपीएफओ कमिश्नर और मंत्री को भी मांग पत्र सौंपा था। यह भी कहा गया है कि अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक यदि कर्मचारियों के पक्ष में निर्णय नहीं हुआ तो निवृत कर्मचारी 1995 राष्ट्रीय समन्वय समिति मप्र हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा।