नई दिल्ली। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इतिहास में ऐसा शायद ही हुआ हो जब किसी पदाधिकारी ने अपने ही हस्ताक्षर से खुद को हटाने का ऐलान करते हुए कोई नई नियुक्ति कर दी हो। महासचिव जनार्दन द्विवेदी ने ऐसा ही किया है। उन्होंने खुद को हटाते हुए अपने पद पर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलात को नियुक्त करने का प्रेस रिलीज जारी किया है। जनार्दन द्विवेदी करीब डेढ़ दशक से पार्टी के संगठन महासचिव थे। उनके दस्तखत से ही पार्टी संगठन में किसी के बनने या हटने की प्रेस रिलीज जारी होती थी, लेकिन आज का दिन मानो अजब सियासी था, जब बतौर संगठन महासचिव जनार्दन द्विवेदी के दस्तखत की प्रेस रिलीज सामने आई। प्रेस रिलीज में अशोक गहलोत के नए संगठन महासचिव बनने की घोषणा थी, तो दूसरी तरफ जनार्दन द्विवेदी के हटने का ऐलान।
हमेशा की तरह इस रिलीज पर भी जनार्दन द्विवेदी के ही हस्ताक्षर थे। ये बतौर संगठन महासचिव उनकी आखिरी रिलीज साबित हुई। जनार्दन द्विवेदी इंदिरा गांधी से प्रभावित होकर छात्र राजनीति के वक्त ही कांग्रेस में आए थे। इंदिरा गांधी से मिलकर समाजवादी विचारों वाले जनार्दन द्विवेदी कई दशकों से कांग्रेस संगठन का हिस्सा रहे। जनार्दन ने कभी पार्टी नहीं छोड़ी।
बेबाकी से राय देते रहे हैं द्विवेदी
इंदिरा के बाद राजीव गांधी के साथ भी काम किया. पार्टी संगठन में उनको आज भी 'पंडित जी' के नाम से जाना जाता है. सोनिया के भाषण लिखने में भी पंडित जी की अहम भूमिका रही. पंडित को पार्टी में नियम कानून से चलने वाला, विद्वान, कवि और साहित्यकार के रूप में जाना जाता है. वो राज्यसभा से सांसद भी रहे. हाल ही में उनका कार्यकाल खत्म हुआ था. सूत्रों की मानें तो जनार्दन द्विवेदी ने खुद ही राहुल से संगठन में बदलाव के लिए हटने का प्रस्ताव पहले ही दे दिया था.
वैसे माना ये भी जाता है कि, अपनी बेबाक राय के लिए पहचाने जाने वाले जनार्दन की राजनैतिक राय राहुल से कम मेल खाती रही. कई मौकों पर तो पार्टी के फैसलों पर वो अपना विरोध जताते रहे. हालांकि, जनार्दन ने इस बात का खासा ख्याल रखा कि, वो अपनी बात सही जगह पर रखें. हालांकि, एक दो बार उनके स्टैंड को लेकर काफी बवाल भी हुआ. एससी-एसटी में क्रीमी लेयर पर उनकी राय से तो सोनिया गांधी को बयान देकर पल्ला झाड़ना पड़ा था.
राहुल के करीबियों के मुताबिक, उनको काफी पहले संगठन से हटाया जाना था, लेकिन सोनिया के हस्तक्षेप के चलते वो बने रहे. लेकिन जब सोनिया हटीं, राहुल आये तो वही हुआ जो होना है. वैसे जनार्दन की बेबाक सलाह और उनके अनुभव को देखते हुए ये भी कहा जा रहा है कि, राहुल उनको किसी और तरीके से इस्तेमाल करते रहेंगे.
सीएम की रेस से गहलोत हुए दूर!
हालांकि, इस ताजा बदलाव में जानकार एक और छुपा संदेश देख रहे हैं. वो ये कि भले ही राहुल ने साफ किया हो कि राजस्थान में कोई सीएम का चेहरा नहीं होगा. लेकिन गहलोत को केंद्रीय संगठन में अहम जिम्मेदारी देकर उनके मुख्यमंत्री बनने की राह को शायद और दूर कर दिया है.
इससे पहले आहिस्ता आहिस्ता राहुल संगठन में लगातार बदलाव करते आये हैं. एक अन्य महासचिव बीके हरिप्रसाद का प्रभार राहुल के करीबी जितेंद्र सिंह को दे दिया गया. साथ ही गुजरात के प्रभारी रहे अशोक गहलोत को प्रोमोट करने से पहले यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सांसद और गुजरात के प्रभारी सचिव राजीव सातव को प्रोमोट किया और उनको गुजरात का प्रभारी बना दिया.
इससे पहले भी राहुल धीरे-धीरे करके कई नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राज्य के प्रभारियों की नियुक्ति खुद कर चुके हैं और आगे भी ये प्रक्रिया यूं ही आहिस्ता-आहिस्ता चलती रहेगी. आखिर राहुल झटके से बदलाव करके तमाम नेताओं को एक साथ झटका नहीं देना चाहते, जिससे बगावती तेवर का खतरा रहे. राहुल का संगठन में बदलाव का सिलसिला जारी है पर आहिस्ता आहिस्ता.