नई दिल्ली। यह कांग्रेस हाईकमान को झकझोर देने वाली खबर है। जिन कार्यकर्ताओं का कांग्रेस ने कभी उपयोग नहीं किया, उन्हीं के साथ मिलकर भाजपा ने त्रिपुरा में सरकार बना ली। 25 साल पुरानी वामपंथियों की सत्ता को उखाड़ने वाले कोई और नहीं बल्कि कांग्रेसी मूल के नेता हैं, लेकिन अब वो कांग्रेस में नहीं हैं। उनके हाथों में भाजपा के झंडे हैं। अवसर का लाभ भाजपा के राजय प्रभारी सुनील देवधर ने उठाया। वो रातों रात बढ़ते गए। दिल्ली में कांग्रेस को पता ही नहीं चला कि त्रिपुरा में उसका सूपड़ा चुनाव लड़ने से पहले ही साफ हो गया है। भाजपा में त्रिपुरा को जीतने की जिद देखिए कि राज्य प्रभारी सुनील देवधर ने लोगों के साथ उनके जैसा बनने के लिए पोर्क (देसी सुअर का मांस) खाना शुरू किया। उन्होंने खुद बताया कि कैसे उन्होंने कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के असंतुष्ट कार्यकर्ताओं को मिलाकर भाजपा का संगठन तैयार कर दिया।
लोग नाराज थे, कांग्रेस ने फायदा नहीं उठाया
देवधर ने बताया त्रिपुरा में ऐसी जीत का मुझे बिलकुल भरोसा नहीं था। जब अमित भाई ने मुझे घर बुलाकर दायित्व सौंपा तो मैंने उनसे सवाल भी किया। मैं कैसे कर पाऊंगा? उन्होंने कहा, मुझे आप पर पूरा भरोसा है। पार्टी के निर्देश के बाद मैं त्रिपुरा पहुंचा। 6 महीने रहा तो मैंने महसूस किया कि लोगों में डर है और लोग बदलाव भी चाहते हैं। कई सालों से राज्य में वाम सत्ता काबिज थी। उसके खिलाफ कांग्रेस (विपक्ष) ने जमीन पर कुछ नहीं किया था।
उनके जैसा बनने के लिए पोर्क भी खाया
देवधर के अनुसार त्रिपुरा में भाजपा के अभियान को बढ़ाने के लिए मैंने जो पहला काम शुरू किया वह था जनजातियों का मफलर यानी गमछा पहनना। हमने इस तरह की बहुत सी छोटी-छोटी चीजें की। ऐसी चीजें काफी मदद करती हैं। मेरे दिमाग में कभी हार या जीत नहीं थी। यहां लोग मुझे अपना समझें, ये मेरा मुख्य मकसद था। मैंने अपनी फूड हैबिट तक बदल दी। हालांकि मैं नॉनवेज पहले से खाता था पर मैंने पोर्क खाना त्रिपुरा में ही शुरू किया (यहां के समाज में पोर्क खाया जाता है)। महाराष्ट्र से आकर यहां ये सबकुछ करना आसान नहीं था।
देवधर ने कहा कि पोर्क खाना चुनाव जीतने के लिए नहीं था। मुझे कभी हार या जीत की फिक्र नहीं थी। मैंने संगठन खड़ा करने के लिए ऐसा किया। मैं संघ में प्रचारक रहा हूं। हमें सिखाया गया है कि 'यस्मिन देशे यदाचार...' यानी जहां आप जाएंगे वहां के रीति-रिवाज में घुलमिल कर रहेंगे तो आत्मीयता हो जाती है। आत्मीयता बढ़ती है।