सूर्य और भारत के साथ जुड़ते लोग | EDITORIAL

राकेश दुबे@प्रतिदिन। दुनिया भले ही हमें अन्धविश्वासी [आर्थोडाक्स] कहे। सूर्य भारत में आस्था और विश्वास है। भारतीय संस्कृति में सूर्य को वैसे भी बह्मांड की आत्मा व सभी जीवों का पोषणकर्ता बताया गया है। व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी सूर्य से प्राप्त गरमी और रोशनी ही हमारे जीवन या अस्तित्व का मुख्य आधार भी है। सूर्य की उष्णता से ही वातावरणीय जल चक्र अनुरक्षित होता है, जो फिर विभिन्न ऋतुओं का कारक बनता है। ये ऋतुएं ही हमारे कृषि का मुख्य आधार हैं, जो हमारे देश की अर्थव्यवस्था का मेरुदंड है। सूर्य की रोशनी से ही हरे पेड़ पौधे प्रकाश का संश्लेषण करते हैं, जिससे सभी जीवों के लिए ऑक्सीजन बनती है और यह हमारी भोजन शृंखला का आधार भी है, जबकि हमारी पारंपरिक सोच यह कहती है कि सूर्य न सिर्फ नौ ग्रहों के प्रमुख हैं, बल्कि उन्हें प्रत्यक्ष देव की संज्ञा दी गई है। 

दूसरी तरह से देखें, तो किसी चीज की अहमियत उसकी अनुपस्थिति में ज्यादा महसूस होती है। यह बात सूर्य के साथ सटीक रूप से लागू होती है। अगर दो-चार दिन भी सूर्य दर्शन न दे, तो जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। अब जिसके बिना जीवन अस्त-व्यस्त हो जाए, वही तो जीवन का मुख्य आधार होता है। सौर प्रणाली में गड़बड़ी होने से मौसमी चक्र भी प्रभावित होता है, जिसका सीधा कुप्रभाव फसलों पर पड़ता है।

फॉसिल फ्यूल के प्रदूषण से परेशान और ग्लोबल वार्मिंग की आशंकाओं से चिंतित दुनिया की सारी उम्मीदें अब सूर्य पर ही टिक गई हैं। भारत और फ्रांस द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के पहले शिखर सम्मेलन को इसी दृष्टि से देखे जाने की जरूरत है। यह सम्मेलन टिकाऊ  विकास व नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में सौर ऊर्जा के महत्व को भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के सामने लाने में कामयाब रहा। जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के मामले में सौर ऊर्जा के उपयोग को सबसे उपयुक्त माना जाता है।

भारतीय में सूर्योपासना की परंपरा हमारे यहां आदि काल से चली आ रही है। आधुनिक काल में हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सूर्य को ऊर्जा के अक्षय स्रोत के रूप में देखते हैं, परंतु शायद इसका भान हमारे पूर्वजों को भी इसी रूप में था। भारत के कई पर्व, यथा पोंगल, मकर संक्रांति, छठ, रथ सप्तमी आदि सूर्य की पूजा से ही संबंधित हैं। वैसे भी आज सूर्य ही है, जो अविजित है और इसके नजदीक तक पहुंच पाने की तकनीक हम विकसित नहीं कर पाए हैं। इस लिहाज से आधुनिक काल में भी सूर्य की पूजा सबसे अधिक प्रासंगिक है। हमें यह भी समझना होगा कि विज्ञान की सीमा जहां समाप्त होती है, वहीं से प्रकृति की सत्ता का प्रारंभ होता है।

किसी भी देश के लिए सौर ऊर्जा के अधिक से अधिक उत्पादन करने का कार्यक्रम बनाना लाजिमी है, क्योंकि यह ऊर्जा का एक स्वतंत्र और कभी न खत्म होने वाला अक्षय स्रोत है। इससे प्रदूषण नियंत्रण में भी सहायता मिलती है और यह ग्लोबल वार्मिंग के निवारण में भी सहायक होता है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार का संतुलन हमेशा प्राकृतिक जीवाश्म ईंधन के आयात से ही बिगड़ता है। इस समस्या का भी निदान सौर ऊर्जा के अधिक से अधिक उत्पादन से हो सकता है। इस दृष्टिकोण से इस क्षेत्र में त्वरित गति से आगे बढ़ना हमारे लिए लाजिमी ही नहीं, अपरिहार्य है। 
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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