युवा-बुजुर्ग कांग्रेस और यह अधिवेशन | EDITORIAL

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। नई दिल्ली में राहुल गाँधी की अध्यक्षता में हो रहा कांग्रेस का 3 दिवसीय “पूर्ण अधिवेशन” यह तय करेगा कि कांग्रेस की दिशा और दशा क्या होगी ? राहुल ने दिसंबर 2017 में अपनी मां सोनिया गांधी से देश की सबसे पुरानी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष का पद संभाला था। अब उन्होंने अपनी नियुक्ति की संवैधानिक जरूरत को पूरा करने के लिए अधिवेशन आयोजित किया हैं। कांग्रेस अध्यक्ष का संसाधन 24 सदस्यीय कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) है। इस समिति का चुनाव अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के 1200 सदस्यों का निर्वाचक मंडल करता है। अधिवेशन में नई सीडब्ल्यूसी का चयन या निर्वाचन या फिर दोनों हो सकते हैं। फिर यह समिति पार्टी के बारे में राहुल को सुझाव देगी। किसी भी राजनीतिक दल का पुनर्गठन करना जोखिम वाला काम है। इसमें निरंतरता होनी चाहिए लेकिन बदलाव भी आना चाहिए। पिछली पीढिय़ों से विरासत में मिले बोझ से निजात मिलनी चाहिए। प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, एक हद तक इसकी अनुमति होनी चाहिए।

अन्य राज्यों के साथ मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। यहाँ कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी टक्कर है। यहाँ पार्टी का चेहरा कौन होगा? यह अभी तय नहीं है। ज्योतिरादित्य सिंधिया राहुल गाँधी की पीढ़ी के हैं और राजघराने से संबंध रखते हैं। उनके पिता के सहयोगी कमलनाथ सफल प्रबंधक हैं और लंबे समय से लोकसभा के सदस्य हैं। दिग्विजय सिंह की कभी पूरे राज्य में  पकड़ थी, फिलहाल वह अपनी नर्मदा यात्रा के अंतिम चरण में हैं। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भरसक प्रयास के बाद अपनी पकड़ पूरे प्रदेश में नहीं बना सके हैं। ऐसे में कांग्रेस में सब अपने को विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी का चेहरा मान बैठे हैं। स्थिति अस्पष्ट है, पूरा लाभ उठाने के लिए इस सवाल का हल जरूरी है।

अधिवेशन के पहले दिन कांग्रेस अध्यक्ष ने जिस भाषा में बात की है, उसमें इन बदलावों की झलक मिलती है। वैसे राहुल गाँधी के 2013 में फिक्की की वार्षिक आम बैठक और पिछले सप्ताह सिंगापुर में भारतीय समुदाय के साथ बैठक में उनके भाषण की तुलना करें तो अंतर साफ नजर आता है। 2013 में राहुल संकोची और रक्षात्मक थे। अब वे उस पार्टी की भाषा बोल रहे है जो सत्ता में आने को आतुर है। राहुल की टीम उस टीम से अलग है जो उनकी मां के साथ थी। सोनिया गाँधी के साथ के जयराम रमेश, मुरली देवड़ा और मनमोहन सिंह हुआ करते थे। लेकिन कांग्रेस के नए अध्यक्ष के साथ सैम पित्रोदा, मिलिंद देवड़ा, मधु गौड़ यक्षी और शशि थरूर हैं। कांग्रेस को भले ही चुनावों में हार का सामना करना पड़ रहा है लेकिन वह बदलने की कोशिश में है। तीन दिन का यह अधिवेशन कांग्रेस में नई जान फूंक पायेगा, इसके कयास लग रहे हैं। कांग्रेस का बुजुर्ग गुट पिछले चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन से खफा नजर आ रहे हैं, पर खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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