राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत का यह कितना विरोधाभासी चित्र है। एक तरफ दुनिया के तमाम देश और प्रमुख वित्तीय संगठन भारतीय अर्थव्यवस्था की लगातार तरक्की को स्वीकार कर रहे हैं, दूसरी ओर प्रसन्नता के मामले में हम छोटे, अविकसित देशों से भी पीछे हैं। पिछले दो-ढाई दशकों में भारत में विकास प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ी है पर उसका फायदा घूम-फिरकर अमीर, ताकतवर तक ही पहुंच रहा है। सामाजिक विकास या कमजोर तबकों को राहत पहुंचाने के लिए इसमें कुछ खास जगह नहीं बन पा रही है । जैसे, सबको शिक्षा और स्वास्थ्य उपलब्ध कराने जैसे बुनियादी कार्य दिनोंदिन पिछड़ते ही जा रहे हैं। खुशहाली तो इन्ही मानकों से आती है।
प्रसन्न देशों की सूची में भारत का मुकाम खिसककर काफी नीचे चला गया है। वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट-2018 में भारत को 153 देशों की सूची में 133वां स्थान मिला है, जबकि पिछले साल वह 122वें स्थान पर था। सूची में पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान हमसे ऊपर हैं। यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की संस्था ‘सस्टेनेबल डिवेलपमेंट सॉल्यूशंस नेटवर्क’ तैयार करती है। प्रसन्नता को मापने के लिए कई ठोस कसौटियां रखी गई हैं, जिनमें प्रमुख हैं- सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), सामाजिक सहयोग, उदारता, भ्रष्टाचार का स्तर, सामाजिक स्वतंत्रता और स्वास्थ्य।
रिपोर्ट का मकसद विभिन्न देशों के शासकों को एक तरह से आईना दिखाना है कि उनकी नीतियां आमजन की जिंदगी खुशहाल बनाने में कोई भूमिका निभा रही हैं या नहीं। इस साल रिपोर्ट में फिनलैंड अव्वल रहा जबकि पिछले साल नॉर्वे ने बाजी मारी थी। यह साफ दिखता है कि पिछले दो-ढाई दशकों में भारत में विकास प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ी है पर उसका फायदा घूम-फिरकर अमीर, ताकतवर तक ही पहुंच रहा है। सामाजिक विकास या कमजोर तबकों को राहत पहुंचाने के लिए इसमें कुछ खास जगह नहीं बन पा रही। जैसे, सबको शिक्षा और स्वास्थ्य उपलब्ध कराने जैसे बुनियादी कार्य दिनोंदिन पिछड़ते ही जा रहे हैं। पिछड़े-वंचित तबके को मुख्यधारा में लाकर विकास प्रक्रिया का हिस्सा बनाने की जो थोड़ी-बहुत कोशिशें हुईं भी, उनकी भूमिका दिखावे तक ही सिमटी रही। नतीजा यह है कि देश की बहुसंख्य आबादी अपनी बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं कर पा रही है। ऐसे में इन करोड़ों लोगों से प्रसन्न रहने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
यह रिपोर्ट विकास दर जैसे आंकड़ों की व्यर्थता साबित करती है और समृद्धि के नीचे तक बंटवारे की चिंता को सामने लाती है। इस सिलसिले में अकेली अच्छी बात यह है कि हैपिनेस इंडेक्स के जरिये सामाजिक प्रसन्नता ने एक विमर्श का रूप लिया है। दिल्ली सरकार एक हैपिनेस कोर्स शुरू करने जा रही है जिसमें बच्चों को फन ऐक्टिविटी के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसकी शुरुआत नए सेशन, 1 अप्रैल 2018-19 से होगी। इसमें परीक्षा नहीं होगी, स्कूली गतिविधियों के आधार पर बीच-बीच में बच्चों की खुशी का स्तर मापा जाएगा। अगर यह कवायद बच्चों को भौतिक संसाधनों की अंधी होड़ से बाहर निकालकर उन्हें समाज के प्रति संवेदनशील बना सके तो इसे सार्थक कहा जाएगा। क्यों न ऐसे कुछ पाठ्यक्रम नीति-निर्माताओं के लिए भी शुरू किए जाएं? मध्यप्रदेश सरकार आनन्द मंत्रालय खोल चुकी है, सरकार की इस गतिविधि से ज्यादा चर्चा किसानों की मौत और महिला उत्पीडन की प्रदेश में होती है। नागरिकों खुशहाली में सरकारी योगदान जरूरी है नागरिक सरकार को टैक्स इसीलिए देते हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।