राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत में इंटरनेट के बाज़ार में गलाकाट स्पर्धा चल रही है। दूसरी ओर यूरोप के देश डिजिटल साम्राज्यवाद के खिलाफ संयुक्त बचाव की तैयारी में हैं। यह स्थिति तब बनी है जब यूरोपीय आयोग ने गूगल पर 2.7 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना गूगल शॉपिंग सर्च के दौरान किए गए मानक उल्लंघन से संबंधित है। गूगल के बाजारवाद के खिलाफ भारत के चिंतक के एन गोविन्दाचार्य न्यायालय में मुकदमा लड़ रहे हैं। इस बीच एक अन्य चौंकाने वाली घटना सामने आई है। इंटरनेट को पैदा करने और दुनिया भर में उसे प्रसारित करने वाले देश अमेरिका में कम से कम आधा मुल्क इस बात पर यकीन करता है कि पिछले राष्ट्रपति चुनाव जिसमें डॉनल्ड ट्रंप जीते, उसमें रूस ने इंटरनेट की मदद से प्रभावशाली हस्तक्षेप किया। यह हस्तक्षेप डॉनल्ड ट्रंप के पक्ष में किया गया था, वरना हिलेरी क्लिंटन आज अमेरिकी राष्ट्रपति होतीं।
पडौसी देश श्रीलंका में बौद्घ और मुस्लिम एक दूसरे के खिलाफ जंग छेड़े हुए हैं। देश में चरमपंथी लोगो को काबू करने के लिए सरकारी अधिकारियों ने कुछ सोशल नेटवर्क वेबसाइटों को बंद करने के आदेश दिए हैं। इस आदेश से फेसबुक, इंस्टाग्राम, वाइबर और व्हाट्सऐप जैसी सोशल साइटें खासतौर पर प्रभावित हुई हैं।
यह जानकारी देने वाली वेबसाइट एंगैजेट का यह भी कहना है कि अतीत में तुर्की ने भी यही काम किया था। उसने भी ट्वीट्स पर सेंसरशिप लागू की थी और सोशल मीडिया को समाज के लिए खराब बताते हुए इसकी जमकर आलोचना की थी। पिछले साल के अंत में कॉन्गो ने भी विरोध प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए इंटरनेट और एसएमएस की सेवाओं पर रोक लगाई थी। उस घटना के बमुश्किल एक दिन बाद ही ईरान के अधिकारियों ने इंस्टाग्राम और टेलीग्राम जैसी सोशल मीडिया सेवाओं पर रोक लगा दी थी।
देश का भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग भी भारत मैट्रीमोनी द्वारा लगातार एक दशक से किए जा रहे प्रयासों के बाद जागा और उसने कहा कि गूगल ने अपनी रसूखदार स्थिति का दुरुपयोग किया और उसने गूगल पर जुर्माना लगाया। यह जुर्माना वर्ष 2015 तक के तीन वर्ष तक गूगल के भारतीय राजस्व का 5 प्रतिशत तय किया गया। यह राशि करीब 1.35 अरब रुपये ठहरती है। यह राशि 60 दिन के भीतर जमा करनी है। प्रतिस्पर्धा आयोग ने कहा कि कंपनी को खोज के मामले में पूर्वग्रह से ग्रस्त होकर काम करते पाया गया और ऐसा करके वह अपने प्रतिस्पर्धियों और उपयोगकर्ताओं दोनों को ही नुकसान पहुंचाने का काम कर रही थी।
टिम बर्नर्स ली जिन्होंने वर्ल्ड वाइड वेब (डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू) का आविष्कार किया उन्होंने इन तमाम गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए गत सप्ताह ब्रिटेन के समाचार पत्र द गार्जियन में लिखा, 'वेब का इस्तेमाल हथियार के रूप में किया जा सकता है और इस पर रोक लगाने के लिए हम बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों पर निर्भर नहीं रह सकते। चुनिंदा कंपनियों का विचारों के साझा होने की प्रक्रिया पर नियंत्रण करना बहुत खतरनाक है। ऐसे में एक नियामक की जरूरत पड़ सकती है। ये दबदबे वाले मंच प्रतिस्पर्धियों के लिए मुश्किल खड़ी करके अपनी स्थिति को मजबूत बनाने में सक्षम हैं। वे स्टार्टअप के रूप में चुनौती देने वाले उपक्रमों को खरीद लेते हैं, नवाचारों पर वे नियंत्रण कर लेते हैं और उद्योग जगत की शीर्ष प्रतिभाओं को भी वे अपने यहां नियुक्त कर लेते हैं। इससे बचने के उपाय भारत को खोजना होंगे। देश में चल रही स्पर्धा में राष्ट्रीय हितों की अनदेखी के साथ देश की सुरक्षा को भी खतरा है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।