राकेश दुबे@प्रतिदिन। सारे घटना क्रम इस बात की पुष्टि कर रहे हैं, कि ‘मोती महल’ में ‘मुख्यमंत्री’ की नहीं ‘माफिया’ की चलती है। मुख्यमंत्री द्वारा 10 अप्रेल 2017 को प्रदेश में शराबबंदी की गई घोषणा महज इसलिए अमल में नहीं आ सकी क्योंकि प्रदेश का मदिरा माफिया ऐसा नहीं चाहता था। तब भी मोती महल मदिरा माफिया के साथ था और अब भी वह, मुख्यमंत्री या उनकी मंशा के साथ नहीं दिख रहा है। मुख्यमंत्री गुजरात और बिहार की तरह एक तिथि विशेष से प्रदेश में शराबबंदी चाहते थे और आज भी सैद्धांतिक रूप से उनकी रूचि उसी ओर दिखती है। इसके विपरीत मोतीमहल तो उस माफिया के पक्ष में खड़ा है जो मोती महल की फाइलों में में ‘ब्लेक लिस्ट’ और प्रदेश के उच्च न्यायलय के प्रश्नों की जद में है।
पता नहीं क्यों प्रदेश को हर सवाल के जवाब के लिए न्यायलय फिर उच्च न्यायलय के फैसले का इंतजार रहता है। प्रदेश के उच्च न्यायालय ने साफ़ कर दिया है कि सोम ग्रुप नामक शराब करोबारी और उसके भागीदारों से जुड़े 610 करोड़ के ठेकों की भी सार्वजनिक नीलामी करना होगी। मोती महल हीला हवाला में लगा है। उसे उच्च न्यायालय की फैसले की कापी चाहिए, तब तक वो अपना काम जारी रखेगा। इस निर्णय में उन 97 समूहों को टेंडर डालने की मनाही है जो काली सूची में हैं। काली सूची में लायसेंस फ़ीस न पटाने टेंडर की शर्तों का उल्लंघन करने और कुछ ऐसी कारगुजारी करने वाले शामिल होते हैं जिनके विरुद्ध विभाग को यह विश्वास हो जाता है कि ये व्यवसाय से बाहर करने योग्य है।
ऐसे 97 समूह पिछले दरवाजे से 610 करोड़ के ठेके प्राप्त करने की पुरजोर कोशिश में थे। काली सूचि में शामिल नामों को हेरफेर बनाये गये समूह इस तरह की कार्रवाई में जुटे है। मोती महल के सहयोग से वे एक अंतरिम स्थगन प्राप्त करने में सफल रहे थे। 20 फरवरी के इस स्थगनादेश से 15 करोड़ जमा कराके 30 करोड़ के ठेके का नवीनीकरण मोती महल से माफिया कराने ही जा रहा था कि उच्च न्यायालय जबलपुर ने अंतरिम स्थगनादेश रद्द कर सारे ठेके निविदा के माध्यम से करने का फैसला सुना दिया।
अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि मोती महल किसके इशारे पर चलता है ? मुख्यमंत्री शराबबंदी चाहते है। उसे उनकी इस बात का समर्थन करना चाहिए। विभाग इसके विरुद्ध चोर दरवाजे ढूढ़ता है। किसके लिए? उन्ही लोगो के लिए जो काली सूची में होने के बाद भी जैसे-तैसे कभी इस नाम से कभी उस नाम से इस व्यवसाय में शामिल है। उनके निजी और कारोबारी रिश्ते रसूख दारों के रंगमहल तक जुड़े है। हर सवाल का जवाब अदालत से नहीं कहीं और से मतलब समाज से भी आना चाहिए। अदालत ने तो 610 करोड़ की बात कही है,उसके पास उतना ही सवाल था। पहले मुख्यमंत्री, उनकी मंशा और समाज की मंशा शराब बंदी के पक्ष में थी और अब भी है। मोती महल का जवाब मदिरा माफिया पर फौरन प्रतिबन्ध होना चाहिए था जो नहीं है। अब फिर सवाल है कि मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप शराब बंदी होगी या नहीं ?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।