नई दिल्ली। सरकार विभाग में काम कर रहीं अस्थाई महिला कर्मचारियों को बड़ी राहत देते हुए कोच्चि हाईकोर्ट ने कहा है कि स्थायी कर्मचारियों की तरह सभी अस्थायी/संविदा/कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी भी छह महीने के मेटरनिटी छुट्टी के हकदार हैं। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र की मोदी सरकार से कहा था कि सरकार को निर्माण सेक्टर में लगे मजदूरों को भी संगठित क्षेत्र की तरह बर्ताव करने का प्रयास करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सरकार इस पर विचार करे कि इन लोगों को कैसे सोशल वेलफेयर के कानूनों का लाभ दिलाया जाए। कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि उसे यह तय करना चाहिए कि इन लोगों को कैसे पेड मैटरनिटी लीव, प्रविडेंट फंड और न्यूनतम मजदूरी जैसी सुविधाएं मिलेंगी।
महिलाओं द्वारा दायर दो याचिकाओं पर विचार करने के बाद कोच्चि हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अनू शिवरामन ने कहा था कि अस्थाई कर्मचारियों को सिर्फ 90 दिनों के लिए मेटरनिटी छुट्टी की अनुमति दी गई थी। वहीं, स्थाई कर्मचारी छह महीने की छुट्टी मिलती है। आपको बता दें कि यह याचिका राखी पी वी नारामबलम और चार अन्य लोगों द्वारा दायर की गई थी।
महिलाओं द्वारा दायर दो याचिकाओं पर विचार करने के बाद कोच्चि हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अनू शिवरामन ने कहा था कि अस्थाई कर्मचारियों को सिर्फ 90 दिनों के लिए मेटरनिटी छुट्टी की अनुमति दी गई थी। वहीं, स्थाई कर्मचारी छह महीने की छुट्टी मिलती है। यह याचिका राखी पी वी नारामबलम और चार अन्य लोगों द्वारा दायर की गई थी।
महिलाओं द्वारा दायर दो याचिकाओं पर विचार करने के बाद कोच्चि हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अनू शिवरामन ने कहा था कि अस्थाई कर्मचारियों को सिर्फ 90 दिनों के लिए मेटरनिटी छुट्टी की अनुमति दी गई थी। वहीं, स्थाई कर्मचारी छह महीने की छुट्टी मिलती है। आपको बता दें कि यह याचिका राखी पी वी नारामबलम और चार अन्य लोगों द्वारा दायर की गई थी।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि याचिकाकर्ताओं का मानना है कि वह राज्य की परियोजनाओं के तहत अनुबंध के आधार पर काम कर रहे महिला कर्मचारी हैं। महिला कर्मचारियों को मेटरनिटी छुट्टी का फायदा भी निश्चित रूप से कल्याणकारी कानून का एक हिस्सा है, जिसका उद्देश्य महिलाओं को सार्वजनिक रोजगार के अवसरों के समान अवसर देना है। कोर्ट के अनुसार उन्हें भी मेटरनिटी छुट्टी स्थाई कर्मचारियों के बराबर मिलनी चाहिए। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि याचिकाकर्ताओं का मानना है कि वह राज्य की परियोजनाओं के तहत अनुबंध के आधार पर काम कर रहे महिला कर्मचारी हैं। महिला कर्मचारियों को मेटरनिटी छुट्टी का फायदा भी निश्चित रूप से कल्याणकारी कानून का एक हिस्सा है, जिसका उद्देश्य महिलाओं को सार्वजनिक रोजगार के अवसरों के समान अवसर देना है। कोर्ट के अनुसार उन्हें भी मेटरनिटी छुट्टी स्थाई कर्मचारियों के बराबर मिलनी चाहिए।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि याचिकाकर्ताओं का मानना है कि वह राज्य की परियोजनाओं के तहत अनुबंध के आधार पर काम कर रहे महिला कर्मचारी हैं। महिला कर्मचारियों को मेटरनिटी छुट्टी का फायदा भी निश्चित रूप से कल्याणकारी कानून का एक हिस्सा है, जिसका उद्देश्य महिलाओं को सार्वजनिक रोजगार के अवसरों के समान अवसर देना है। कोर्ट के अनुसार उन्हें भी मेटरनिटी छुट्टी स्थाई कर्मचारियों के बराबर मिलनी चाहिए।
देश भर में निर्माण सेक्टर में लगे करीब 4 करोड़ मजदूरों को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह इन लोगों को भी सामाजिक योजनाओं का लाभ देने पर विचार करे। कोर्ट ने आदेश दिया कि सरकार एक स्कीम तैयार करे, जिससे इन मजदूरों को उचित शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, वृद्धावस्था, दिव्यांग पेंशन और अन्य जरूरी सुविधाएं मिल सकें। अदालत ने कहा कि यदि हम ऐसा सुनिश्चित कर पाएंगे तो ये लोग भी सम्मानित जीवन जी सकेंगे. जस्टिस मदन बी. लोकुर और दीपक गुप्ता की बेंच ने केंद्र और राज्य सरकारों के रवैये पर चिंता जताते हुए कहा कि इनके लिए बने बिल्डिंग ऐंड अदर कंस्ट्रशन वर्कर्स ऐक्ट, 1996 को ही से लागू नहीं किया गया।
देश भर में निर्माण सेक्टर में लगे करीब 4 करोड़ मजदूरों को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह इन लोगों को भी सामाजिक योजनाओं का लाभ देने पर विचार करे। कोर्ट ने आदेश दिया कि सरकार एक स्कीम तैयार करे, जिससे इन मजदूरों को उचित शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, वृद्धावस्था, दिव्यांग पेंशन और अन्य जरूरी सुविधाएं मिल सकें। अदालत ने कहा कि यदि हम ऐसा सुनिश्चित कर पाएंगे तो ये लोग भी सम्मानित जीवन जी सकेंगे। जस्टिस मदन बी. लोकुर और दीपक गुप्ता की बेंच ने केंद्र और राज्य सरकारों के रवैये पर चिंता जताते हुए कहा कि इनके लिए बने बिल्डिंग ऐंड अदर कंस्ट्रशन वर्कर्स ऐक्ट, 1996 को ही से लागू नहीं किया गया।
देश भर में निर्माण सेक्टर में लगे करीब 4 करोड़ मजदूरों को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह इन लोगों को भी सामाजिक योजनाओं का लाभ देने पर विचार करे। कोर्ट ने आदेश दिया कि सरकार एक स्कीम तैयार करे, जिससे इन मजदूरों को उचित शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, वृद्धावस्था, दिव्यांग पेंशन और अन्य जरूरी सुविधाएं मिल सकें। अदालत ने कहा कि यदि हम ऐसा सुनिश्चित कर पाएंगे तो ये लोग भी सम्मानित जीवन जी सकेंगे। जस्टिस मदन बी. लोकुर और दीपक गुप्ता की बेंच ने केंद्र और राज्य सरकारों के रवैये पर चिंता जताते हुए कहा कि इनके लिए बने बिल्डिंग ऐंड अदर कंस्ट्रशन वर्कर्स ऐक्ट, 1996 को ही से लागू नहीं किया गया।