श्रीमद डांगौरी/भोपाल। मंत्री रामपाल सिंह ने उदयपुरा में आत्महत्या करने वाली प्रीति रघुवंशी को अपनी बहू तो मान लिया लेकिन इसके पीछे भी राजनीति नजर आती है। उन्होंने अपने बेटे गिरजेश सिंह को प्रीति की अस्थियां संचय के लिए भी भेजा लेकिन यहां भी कुछ असामान्य रहा। कुछ ऐसा जैसे कोई चाल है, साजिश, या षडयंत्र। मामला टल भी जाए और जिम्मेदारी सिर पर भी ना आए। कुछ दिनों बाद पलट जाएंगे। कोई कुछ कह ही नहीं पाएगा।
संदेह की पहली वजह
मंत्री रामपाल सिंह ने रघुवंशी समाज के प्रदेश अध्यक्ष अजय सिंह रघुवंशी को रात 2:30 बजे फोन करके प्रीति रघुवंशी को बहू स्वीकार कर लिया लेकिन सुबह वो अपने समधी के यहां बैठने नहीं आए। सबकुछ ऐसे किया जिससे मामला ठंडा हो जाए और कोई प्रमाणित भी ना कर पाए कि रामपाल सिंह ने प्रीति को बहू स्वीकार किया है। मीडिया के सामने आकर उन्होंने प्रीति को बहू मानने से इंकार किया था, उन्हे मीडिया के सामने आकर प्रीति को उसका सम्मान लौटाना चाहिए। शोक जताने के लिए समधी के यहां जाना चाहिए। समाज के बीच में आकर यह बयान देना चाहिए। आधीरात को चुपके से किसी के कान में कहने का क्या तात्पर्य, फिर चाहे वो समाज का अध्यक्ष ही क्यों ना हो।
संदेह की दूसरी और बड़ी वजह
मंत्री रामपाल सिंह के कहने पर उनका बेटा और प्रीति का पति गिरजेश प्रताप सिंह अस्थि संचय के लिए उदयपुरा पहुंचा परंतु वहां इस बात का ध्यान रखा गया कि कहीं कोई फोटो/वीडियो ना बना ले। प्रीति के ताऊ के बेटे मंजीत ने फोटो लेने की कोशिश की तो उसे रोक दिया गया। उदयपुरा के पत्रकारों को इस मामले से दूर ही रहने का कहा गया। सवाल यह है कि ऐसा क्यों। कहीं ऐसा तो नहीं कि अस्थि संचय में भाग लेकर रघुवंशी समाज को चुप करा दिया गया और कुछ समय बाद पलट जाएंगे। कोई फोटो/वीडियो/आॅडियो तो है नहीं जो प्रमाणित करे कि रामपाल सिंह और उसके बेटे ने प्रीति को मान्यता दे दी थी।
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