भोपाल। मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह सरकार कई लोक लुभावन योजनाएं चला रही है। जन्मदिवस के अवसर पर सीएम ने 200 रुपए में अनलिमिटेड बिजली, पीएम मोदी की 5 लाख वाली हेल्थकेयर पॉलिसी के बावजूद 2 लाख का अतिरिक्त बीमा, वर्ग विशेष के बच्चों की प्राइवेट स्कूल में प्राइमरी से लेकर प्राइवेट कॉलेज में पीएचडी तक की फीस देने का ऐलान किया है परंतु मध्यप्रदेश की आम जनता के आस्था केंद्र प्राचीन मंदिरों की देखभाल के लिए जारी होने वाले बजट को आधा कर दिया है, वो भी तब जबकि पहले से ही यह कम पड़ रहा था।
मध्यप्रदेश देश के उन राज्यों में शुमार है, जहां प्राचीन महत्व के मंदिरों की भरमार है। राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में छोटे बड़े मंदिरों की संख्या 23000 से ज्यादा है और इनमें से ज्यादातर मंदिर ऐसे हैं जहां एक दिन में सैकड़ों भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं लेकिन ज्यादातर मंदिरों के हाल है ये कि यहां न तो मरम्मत के लिए राशि है और ना ही भक्तों के दर्शन मुहैया कराने के लिए पर्याप्त इंतजाम हैं।
आलम ये है कि मंदिरों के रखरखाव के लिए ज्यादातर मंदिर पुजारी सरकार से आस बांधे हुए हैं। सरकार भी हर साल बजट में मंदिरों के रखरखाव के लिए बजट का प्रावधान करती है लेकिन ये नाकाफी साबित होता है। इस साल सरकार ने मंदिरों के विकास के लिए आवंटित राशि का बजट पिछले साल की तुलना में करीब आधा कर दिया है। जिस पर अब बवाल उठ खड़ा हुआ है।
प्रदेश में मौजूद मंदिर और उसके लिए आवंटित बजट पर नजर डालें तो साल 2017-18 में बजट 36 करोड़ 50 लाख था साल 2018-19 के बजट में 18 करोड़ का प्रावधान है, यानि की लगभग आधा। प्रदेश में मंदिरों की संख्या 23 हजार से ज्यादा है। प्रत्येक मंदिर को साल भर के लिए 7826 रुपए दिए गए हैं। पिछले साल कुल 150 मंदिरों के विकास के लिए राशि जारी हो सकी थी। इस बार 75 मंदिर भी नहीं हो पाएंगे।
इस बार सरकार के पास पांच सौ से ज्यादा मंदिरों में निर्माण के लिए प्रस्ताव सरकार को मिले हैं। ऐसे में मंदिरों के विकास के लिए जारी होने वाली अनुदान की राशि में इस बार कटौती का असर मंदिरों पर दिखाई देगा। वहीं प्रदेश की धर्मस्व मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया कम बजट पर अपनी बेबसी जाहिर कर रही हैं।