भोपाल। चुनावी सभाओं में सीएम शिवराज सिंह चौहान तेज आवाज में चिल्लाते हैं कि विकास के लिए पैसे की कमी नहीं आने दूंगा। ये शब्द कुछ ऐसे होते हैं, मानो कह रहे हों कि जरूरत हुई तो अपना विदिशा वाला खेत बेच दूंगा, जबकि हालात यह है कि मप्र का सरकारी खजाना ना केवल खाली है बल्कि डेढ़ लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज भी है। हर महीने करोड़ों के मंच सजाने वाली सरकार के पास स्मार्टसिटी के लिए धेला तक नहीं है। हालात यह है कि मोदी सरकार ने भी अपना फंड रोक दिया है और भोपाल इंदौर समेत मप्र की सभी स्मार्ट सिटी के काम अटक गए हैं।
पत्रकार श्री शैलेंद्र चौहान की रिपोर्ट के अनुसार भोपाल-इंदौर समेत प्रदेश में प्रस्तावित 7 स्मार्ट सिटी की राह में अब राज्य की खराब माली हालत रोड़ा बन रही है। स्मार्ट सिटी निर्माण के लिए राज्य सरकार के पास अपने हिस्से की अंशपूंजी देने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है। केंद्र सरकार ने फंडिंग के लिए ऐसी शर्त जोड़ दी है, जो राज्य सरकार के लिए गले की फांस बन गई है। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर कह दिया है कि जब तक राज्य सरकार स्मार्ट सिटी निर्माण के लिए अपने हिस्से की राशि नहीं देगा, तब तक केंद्र भी अपने हिस्से का कैपिटल शेयर जारी नहीं करेगा।
गौरतलब है कि केंद्र और राज्य दोनों की बराबर अंशपूंजी वाली इस योजना के तहत हर स्मार्ट सिटी के निर्माण पर कुल एक हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाने हैं, जिसमें से 500 करोड़ रुपए केंद्र सरकार की और 500 करोड़ राज्य सरकार की हिस्सेदारी है। दोनों को यह राशि 5 साल तक 100-100 करोड़ रुपए की किस्त के रूप में देना हैं।
मप्र के वित्त विभाग ने लगाया अड़ंगा
राज्य सरकार से पहली किश्त में पांचों शहर के लिए 100-100 करोड़ रुपए के हिसाब से 500 करोड़ रुपए जारी हुए थे, लेकिन वित्त विभाग ने दूसरी किस्त के 500 करोड़ रुपए जारी नहीं किए हैं। वित्त विभाग ने आपत्ति लगाई है कि जब मौके पर स्मार्ट सिटी का काम धीमी रफ्तार से चल रहा है तो हम राशि क्यों जारी करेंगे और बजट राशि जारी नहीं की। वहीं केंद्र सरकार ने भी अगली किस्त का पैसा रोक लिया। अब बजट के बाद तीसरी किस्त की बारी आ चुकी है, लेकिन दूसरे राज्यों की तुलना में धीमी रफ्तार से प्रोजेक्ट पर काम के चलते ये राशि अटक जाएगी।