MPPEB: अपात्रों का पात्र मानकर परीक्षा में शामिल कर लिया | MP NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल। प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (पीईबी) किसी प्राइवेट धंधेबाज परीक्षा केंद्र जैसी हो गई है। अपात्र उम्मीदवारों को भी पात्र मानकर परीक्षा में शामिल कर लिया जाता है फिर दस्तावेज सत्यापन के समय समस्याएं आतीं हैं। सवाल उठते हैं। पीईबी के अधिकारी सारा दोष विभाग पर डाल देते हैं। सवाल यह है कि जब विभाग रिक्त पदों की सूचना के साथ नियमावली भेजता है तो उसका पालन क्यों नहीं किया जाता। नगरीय निकायों के 37 विभागों में अधिकारियों के 2213 पदों के लिए नवंबर 2016 में हुई कंबाइंड परीक्षा का मामला इसका ताजा प्रमाण है। 

विभाग ने वो डिग्री मांगी जो होती ही नहीं 
इस हेतु जनवरी 2017 में परीक्षाएं ली गईं। अप्रैल 2017 में इनका रिजल्ट घोषित कर दिया। जून 2017 में सभी मेरिट अभ्यर्थियों को नियुक्ति दी जाना थी। इसके लिए सभी चयनित उम्मीदवारों को डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के लिए संचालनालय नगरीय प्रशासन बुलाया गया। चयनित उम्मीदवार जब स्क्रूटनी के लिए भोपाल गए तो उनसे वह डिग्री मांग ली गई जिसका कोर्स ही नहीं होता है। यानी चयनित परीक्षार्थियों से शैक्षणिक योग्यता के नाम पर यातायात प्रबंधन में उपाधि या यातायात प्रबंधन में अन्य कोई विशिष्ट उपाधि मांगी गई। जबकि प्रदेश की किसी भी यूनिवर्सिटी में इस तरह का कोर्स होता ही नहीं है। विभाग ने फरवरी 2018 में आदेश निकालकर सभी मेरिट होल्डर्स को अपात्र घोषित कर दिया। 

परीक्षा पास कर ली तो फिर नियुक्त क्यों नहीं
सालभर से भोपाल के चक्कर काट रहे उम्मीदवारों का आरोप है कि अधिकारियों ने राज्य के बेरोजगारों के साथ छलावा किया है। परीक्षा पास करने के बाद भी उन्हें नियुक्ति नहीं दी जा रही है। मेरिट होल्डर्स ने जब नगरीय निकाय के अधिकारियों के समक्ष आपत्ति जताई तो उन्हें कहा गया कि विज्ञप्ति में यातायात प्रबंधन में उपाधि का जिक्र था। जबकि हकीकत यह है कि विज्ञप्ति में शैक्षणिक योग्यता वाले सभी फोंट मिसिंग थे। दोषी प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड है जिसका खामियाजा उम्मीदवारों को भुगतना पड़ रहा है। 

बड़ा सवाल: फॉर्म रिजेक्ट क्यों नहीं हुआ? 
परीक्षार्थियों ने अॉनलाइन फॉर्म भरते समय अपनी शैक्षणिक योग्यताएं बता दी थीं। फॉर्म भरते समय जिन पदों के लिए सीपीसीटी स्कोर कार्ड मांगा गया था और जिस भी उम्मीदवार ने सीपीसीटी का उल्लेख नहीं किया उनके फॉर्म रिजेक्ट हो गए। यही प्रक्रिया यातायात अधिकारी या अन्य पोस्ट के लिए के फॉर्म भरते समय क्यों नहीं अपनाई गई? यदि उम्मीदवारों ने यातायात प्रबंधन में डिग्री नहीं होने का उल्लेख किया था तो उनका फॉर्म रिजेक्ट हो जाना चाहिए था। 

देश भर से अलग नियम लागू कर दिया
राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक सहित देशभर में नगरीय निकायों में यातायात अधिकारी के लिए शैक्षणिक योग्यता मैकेनिकल या ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग को मान्यता है। प्रदेश का नगरीय निकाय विभाग उक्त डिग्रीधारी युवाओं को नियुक्ति नहीं दे रहा है। निकायों में यातायात अधिकारी के पदों के लिए आवेदन करने वाले युवाओं की ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग डिग्री निरर्थक होकर रह गई है। मेरिट होल्डर प्रतिभागियों ने विभाग से आरटीआई के तहत पूछा कि यातायात प्रबंधन का कोर्स कहां होता है तो उन्हें जवाब दिया गया कि इस उपाधि का हमारे विभाग से कोई संबंध नहीं है। सवाल यह उठता है कि जब उक्त उपाधि का विभाग से कोई संबंध ही नहीं है तो फिर उसे मांगा क्यों जा रहा है? 

नगरीय निकाय का कुतर्क
नगरीय निकायों में यातायात प्रबंधन के रिक्त पदों को जल्दी ही भरा जाएगा। डिग्री को लेकर उम्मीदवारों की आपत्तियां सुनी जा रही हैं। यातायात की डिग्री होती तो है। (हालांकि यह नहीं बताया कि कौन कराता है।) पात्र परीक्षार्थियों का ही चयन किया जाएगा। मेरिट लिस्ट से काम नहीं बना तो वेटिंग लिस्ट से भी नियुक्तियां दी जाएंगी। 
मयंक वर्मा, संयुक्त संचालक, नगरीय प्रशासन 

शिकायत करें तो मदद करेंगे
प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड विभागों की डिमांड के अनुसार ही रूल बुक अपलोड करता है। नगरीय प्रशासन विभाग के अधिकारी यदि पीईबी की गलती बता रहे हैं तो झूठ बोल रहे हैं। विज्ञप्ति में यदि फोंट मिसिंग थे तो पीड़ित परीक्षार्थी पीईबी को लिखित शिकायत करें। इस मामले में उनकी मदद की जाएगी। 
एकेएस भदौरिया, परीक्षा नियंत्रक, पीईबी 

क्या हैं दस्तावेज सत्यापन के नियम
दस्तावेज सत्यापन के सीधे नियम हैं कि आवेदक ने फार्म में जो डिग्री या प्रमाण पत्र का जिक्र किया है उनकी जांच की जाए और पता लगाया जाए कि वो सही हैं या नहीं। आवेदन फार्म के अतिरिक्त कोई दस्तावेज की मांग नहीं की जा सकती। इस प्रक्रिया का नाम ही दस्तावेज सत्यापन है। केवल सत्यापन किया जाना है। आॅडिट नहीं किया जा सकता। फार्म में दर्ज दस्तावेजों के अतिरिक्त कोई दस्तावेज नहीं मांगा जा सकता। केवल असली और फर्जी की जांच की जाती है। नए नियम व शर्तें नहीं लगाई जा सकतीं। इस मामले में नगरीय निकाय और प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड फंस गया है। यदि उम्मीदवार हाईकोर्ट चले जाएं तो उन्हे नियुक्तियां मिलना तय है। 

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