
यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता तपन भट्टाचार्य ने दायर की है। बुधवार को उनकी तरफ से सीनियर एडवोकेट आनंद मोहन माथुर ने बहस की। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट खुद कह चुकी है कि यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह लोगों के लिए रोजगार पैदा करे और उचित व्यक्ति को उस पर नियुक्त करे। परीक्षा के नाम पर सरकार मोटी फीस वसूल रही है। फीस में समानता भी नहीं है। अलग-अलग परीक्षा के लिए अलग-अलग फीस तय की जाती है जबकि शासन को इसके लिए अलग से अमला तैनात नहीं करना पड़ता। व्यक्ति नौकरी के लिए आवेदन ही इसलिए करता है क्योंकि उसके पास रोजगार नहीं है।
नौ हजार पद के लिए साढ़े 12 लाख आवेदन
एडवोकेट माथुर ने बताया कि हाल ही में पटवारी भर्ती परीक्षा के नाम पर सरकार ने 50 करोड़ रुपए वसूले हैं। नौ हजार पदों के लिए साढ़े 12 लाख आवेदन आए थे। परीक्षा के हफ्तों बाद भी परिणाम घोषित नहीं किया गया। कई बार तो सरकार खुद मनमर्जी से परीक्षा निरस्त कर देती है। ऐसी स्थिति में आवेदक को फीस भी नहीं लौटाई जाती। शासन सिर्फ उतनी ही फीस वसूले जितना परीक्षा पर खर्च आ रहा है। जस्टिस पीके जायसवाल और जस्टिस वीरेंदरसिंह की डिविजनल बेंच ने याचिका पर बहस सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया।