
गौरतलब है कि कर्नाटक चुनाव से पहले प्रभावी लिंगायत समुदाय को अलग धर्म और अल्पसंख्यक दर्जा देने का फैसला कर सिद्धारमैया सरकार ने राजनीतिक दांव तो चल दिया। मगर, यह अति संवेदनशील मुद्दा दोधारी तलवार की तरह हर किसी को डरा भी रहा है। यही कारण है कि जिसे सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा माना जा रहा है, उस पर राज्य से लेकर केंद्र तक कांग्रेस और भाजपा में लगभग चुप्पी साध रखी है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने मंगलवार को बताया कि कर्नाटक सरकार का उक्त प्रस्ताव प्राप्त होते ही उसे गहराई से पड़ताल के लिए महापंजीयक और जनगणना आयुक्त को भेजे जाने की संभावना है। इसके अलावा उनसे इस प्रस्ताव पर सुझाव भी मांगे जाएंगे।
दरअसल, भाजपा का मानना है कि कर्नाटक की सिद्दरमैया सरकार ने यह फैसला आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर लिया है और वह धर्म के नाम पर राजनीति कर रही है। अगर ऐसा नहीं होता तो मनमोहन सिंह सरकार ने ही यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया होता।
केंद्रीय संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया, "नवंबर 2013 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने कहा था कि अलग धर्म का दर्जा देने से समाज और बंट जाएगा और लिंगायत व वीरशैव समुदाय का अनुसूचित जाति का दर्जा भी प्रभावित होगा।"
उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस अब अपने ही पूर्व के फैसले को पलट रही है। मेघवाल ने भारत के महापंजीयक द्वारा 14 नवंबर, 2013 को कर्नाटक सरकार को लिखे पत्र के हवाले से बताया कि वीरशैव और लिंगायत हिंदुओं के समुदाय हैं न कि अलग धर्म। उन्होंने कहा कि इस मसले पर केंद्र सरकार का फैसला बिल्कुल स्पष्ट है और इसमें कोई बदलाव नहीं होगा।