
10 साल तक लगातार बेस्ट मेयर का अवार्ड से सम्मानित किया गया। उन्होंने छत्तीसगढ़ में बीजेपी के नेता के तौर पर पहली बार महापौर का चुनाव लड़ा और जीत मिली थी। 2008 में भिलाई के वैशाली नगर सीट से विधानसभा से चुनाव लड़ा। उन्होंने विधानसभा चुनाव में अपने प्रतिद्वंदी प्रत्याशी बृजमोहन को लगभग 15 हजार मतों से हराया था। बस यहीं से सरोज के करियर में टर्निंग पॉइंट आ गया। जिसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
दुर्ग से पहली बार बनीं सांसद
बीजेपी ने 2009 में उन्हें महापौर रहते हुए आम चुनाव में विधायक और दुर्ग सीट से लोकसभा उम्मीदवार के तौर पर खड़ा कर दिया। डॉ. सरोज का सीधा मुकाबला बीजेपी से बगावत कर बाहर हुए दुर्ग से लगातार तीन बार के सांसद ताराचंद साहू से था। पांडेय ने साहू को भारी मतों से हराया। इसी जीत के साथ पांडेय का राष्ट्रीय राजनीति में कद बढ़ता चला गया। सांसद रहते ही पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय महिला मोर्चा का अध्यक्ष बनाया।
मोदी लहर के बावजूद हार का सामना
डॉ. सरोज को 2014 में हुए आम चुनाव में मोदी लहर होने के बाबजूद हार का सामना करना पड़ा। छत्तीसगढ़ से इकलौती बीजेपी कैंडिडेट थीं, जिन्हें हार मिली। इसके बाद राजनीति की गलियों में सरोज की आलोचना शुरू हुई। माना जाने लगा कि अब इनका राजनीतिक करियर खत्म हो गया लेकिन बीजेपी ने उन्हें महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौरान बड़ी जिम्मेदारी दी। वह महाराष्ट्र में सफल हुईं। इसके बाद नेशनल लेवल डॉ. सरोज पांडेय की पकड़ मजबूत होती गई।