राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश के दक्षिणी राज्य 15वें वित्त आयोग की शर्तों को लेकर काफी नाराज हैं। उनका आरोप है कि केंद्र संविधान की संघीय भावना का उल्लंघन कर रहा है। तमिलनाडु, ओडिशा और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों ने भी इस मसले पर केंद्र सरकार को अलग से चिट्ठियां लिखी हैं, जिनमें उन्होंने अपनी चिंता का इजहार किया है। वित्त आयोग की शर्तों से नाराज राज्यों की अगली बैठक विशाखापट्टनम में हो सकती है।
प्रत्येक पांच साल बाद वित्त आयोग का गठन किया जाता है, जिससे यह तय हो सके कि केंद्र व राज्यों के बीच और राज्य-राज्य के बीच राजस्व के बंटवारे की रूपरेखा कैसी हो ? दरअसल, राजस्व सामूहिक रूप से इकट्ठा किया जाता है और फिर उसके बंटवारे का एक फॉर्मूला तय होता है। इस बार दक्षिणी राज्यों की मुख्य आपत्ति वित्त आयोग के इस फैसले को लेकर है कि उसने 2011 की आबादी को अपना आधार बनाया है, जबकि अब तक 1971 की जनसंख्या को ही मानदंड माना जाता रहा है। वैसे 14वें वित्त आयोग ने 2011 की जनसंख्या को 10 प्रतिशत अतिरिक्त महत्व दिया था, पर इस बार राजस्व बंटवारे में 2011 की आबादी को ही पूर्णत: आधार बनाया जाएगा।
दक्षिणी राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण के क्षेत्र में अच्छा काम किया है। जैसे, 1971 से 2011 के बीच दक्षिण में ‘स्थानापन्न प्रजनन दर’ 2.1 या इससे भी कम रही है। यह दर इस बात से तय होती है कि प्रति महिला कितने बच्चों ने जन्म लिया? इससे यह पता चलता है कि स्थानानांतरण के बगैर एक पीढ़ी की जगह दूसरी पीढ़ी की जनसंख्या में कितनी बढ़ोतरी हुई? इस लिहाज से उत्तर प्रदेश और बिहार के मुकाबले दक्षिणी राज्यों की जनसंख्या वृद्धि कम रही है। ऐसे में, इन राज्यों को लग रहा है कि आबादी के नियंत्रण में बेहतर प्रदर्शन के लिए उन्हें वित्त आयोग ‘दंडित’ कर रहा है।
दक्षिणी राज्यों का आरोप है कि आयोग की शर्तों ने वित्तीय अनुशासन के महत्व को घटा दिया है। उनके मुताबिक, इन शर्तों ने राजस्व आवंटन को अधिक जनसंख्या वाले प्रांतों की तरफ झुका दिया है। दक्षिणी राज्य केंद्र के इस दावे को भी खारिज करते हैं कि 14वें वित्त आयोग में अभूतपूर्व कदम उठाते हुए कुल राजस्व का 42 फीसदी हिस्सा राज्यों को हस्तांतरित कर दिया था, जो कि पूर्व के वित्तीय वर्ष के आवंटन 10 प्रतिशत का इजाफा था। राज्यों का कहना है कि यह ‘अधिक धन’ आवंटन नहीं था, बल्कि ‘अधिक संगठित’ कोष का आवंटन था। केंद्र सरकार का कहना है कि उसका खुद का राजस्व दायरा सीमित है और दक्षिणी राज्यों को रक्षा व राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में बढ़े खर्चे को भी ध्यान में रखना पड़ेगा। मगर दक्षिण के राज्य इस दलील से संतुष्ट नहीं हैं। दक्षिणी राज्यों के वित्त मंत्रियों की इस बैठक ने, जिनमें से अनेक एनडीए के बाहर के दल हैं, केंद्र को बेचैन तो किया ही है। इसीलिए प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री ने उनकी चिंताओं को ‘अनावश्यक’ बताया है। । लेकिन दक्षिणी राज्य विभिन्न आकलनों से यह दिखा रहे हैं कि उन्हें राजस्व का नुकसान होने जा रहा है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।