नई दिल्ली। एक बार फिर तीसरे विश्वयुद्ध की आशंकाएं उठ रहीं हैं। अमेरिका और रूस के राष्ट्रपति अपने अहंकार को ऊंचा रखने के लिए सारी दुनिया को युद्ध में झौंकने वाली हरकतें कर रहे हैं। पिछले 2 विश्वयुद्धों के अनुभव सारी दुनिया के इतिहास में दर्ज हैं। वहां ना तो जीतने वाला फायदे में रहा और ना ही हारने वाला। यदि किसी का नुक्सान हुआ तो वो केवल नागरिकों का था।
जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं दोनों के रिश्ते बेहद तल्ख होते जा रहे हैं, तो क्या दोनों पूरी दुनिया को जंग में झोंकने का मन बना चुके हैं? क्या ट्रंप और पुतिन दोनों तीसरे विश्व युद्ध का ब्लूप्रिंट तैयार कर रहे हैं? दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका और सोवियत संघ ने मिलकर धुरी राष्ट्रों को धूल चटाई थी लेकिन दूसरे वर्ल्ड वार के बाद हालात बदले और दोनों देश महाशक्ति बनने का सपना संजोए हथियारों की होड़ में लग गए, फिर शुरुआत हुई शीत युद्ध की। सोवियत संघ और अमेरिका के बीच मतभेद तो थे लेकिन दोनों सालों तक आमने-सामने नहीं आए।
ये है रूस और अमेरिका के बीच टंटे की जड़
सितंबर 1962 में क्यूबा संकट की वजह से तीसरे विश्व युद्ध की आहट जरूर सुनाई देने लगी। दरअसल, सोवियत संघ ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी थी। जब अमेरिका को उन मिसाइलों का पता चला तो क्यूबा आने वाली जहाजों पर पैनी नजर रखी जाने लगी. रूस बिफर गया और परमाणु पनडुब्बी क्यूबा के लिए रवाना कर दिए। अमेरिकी युद्धपोत और रूसी पनडुब्बी आमने-सामने हो गए. लेकिन दुनिया के दबाव में युद्ध टल गया।
तेल का है सारा खेल
उस वक्त युद्ध तो टल गया लेकिन रूस और अमेरिका के बीच तनाव कभी कम नहीं हुआ। अलग-अलग मुद्दों पर दोनों देशों में हमेशा मतभेद रहे। हाल के सालों में मध्य पूर्व में वर्चस्व दोनों के बीच तनाव की सबसे बड़ी वजह रही है।
यानी रूस और अमेरिका तेल के खेल का चैंपियन बनना चाहते हैं। सीरिया और ईरान को रूस का समर्थन हासिल है तो सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को अमेरिका का। इसी खेल में हालात बिगड़ रहे हैं। एक बार फिर तीसरे विश्व युद्ध की आहट सुनाई दे रही है लेकिन अगर इस बार वर्ल्ड वार हुआ तो मुकाबला त्रिकोणीय होगा।