भोपाल। मप्र कांग्रेस में भले ही खींचतान चल रही हो। कमलनाथ की ताजपोशी से शिवराज की राहें आसान भी कही जा रहीं हों परंतु भाजपा कोई चांस लेने के मूड में नहीं है। इसी के चलते एक नई योजना तैयार की गई है। इसके तहत मप्र में 50 हजार रिटायर्ड दलित अफसरों को भाजपा से जोड़ा जाएगा। बताने की जरूरत नहीं कि टारगेट है मप्र की बस्तियों में मौजूद दलितों का थोकबंद वोट। आइडिया आरएसएस से कॉपी किया गया है। यूपी में ट्रायल भी हो चुका है।
मप्र में भाजपा ने पन्ना प्रमुख बनाकर चमत्कारी परिणाम दिए थे। अब भाजपा देश भर में पन्ना प्रमुख बना रही है। 2018 के चुनाव में घटते वोट को कवर कुछ नया करना जरूरी है। 2013 में कांग्रेस को जो वोट मिला, उसमें सेंधमारी अब आसान नहीं है लेकिन बसपा का पूरा वोटबैंक हड़प किया जा सकता है। इसी पर भाजपा की नजर टिकी हुई है। प्रदेश के 51 जिलों में दलित कमजोर बस्तियों में सामाजिक न्याय, आर्थिक सुरक्षा और अधिकारिता सुनिश्चित करने के लिए बस्ती प्रमुखों का मनोनयन किया जा रहा है। बस्ती प्रमुख के पद पर भाजपा का दलित नेता नहीं बल्कि किसी रिटायर्ड कर्मचारी/अधिकारी को नियुक्त किया जाएगा। बीजेपी का कहना है कि रिटायर्ड अफसर सत्ता में लंबे समय तक रहे हैं, इसलिए उन्हें बस्ती प्रमुख की जिम्मेदारी देकर सरकारी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने की कोशिश की जाएगी।
बीजेपी ने प्रदेश में 50 हजार बस्ती प्रमुख बनाने का टारगेट एससी-एसटी मोर्चा को दिया है। दो अप्रैल को दलित हिंसा के बाद बीजेपी नहीं चाहती है कि उसे आगामी विधानसभा चुनाव में दलित वोट बैंक को लेकर कोई नुकसान हो। बीजेपी संगठन सरकारी अधिकारियों समेत दूसरे समाजसेवियों को अपने साथ जोड़कर उन्हें चुनाव में भुनने की कोशिश कर रहा है।
सबसे पहले बस्ती प्रमुख की जिम्मेदारी रिटायर्ड अधिकारियों को दी जा रही है। इसके बाद यदि रिटायर्ड अधिकारी नहीं मिलते हैं, तो बस्ती प्रमुख का जिम्मा बुद्धिजीवी वर्ग, वकील, डॉक्टर, प्राध्यापक, इंजीनियर समेत समाजसेवियों को दिया जाएगा।
वहीं इस मामले में कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरकार ने सत्ता में रहने के दौरान पहले सरकारी अधिकारियों के साथ भ्रष्टाचार किया। अब बीजेपी इसी मशीनरी का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करने का प्रयास कर रही है।