
मालवा-निमाड़ खाली हाथ
शिवराज कैबिनेट में भौगोलिक संतुलन देखा जाए तो 70 से ज्यादा विधायकों वाले मालवा-निमाड़ क्षेत्र को कैबिनेट में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय द्वारा कैबिनेट से इस्तीफा देने के बाद से इंदौर जैसे बड़े शहर से कोई मंत्री नहीं है। जब कभी कैबिनेट विस्तार की बात चलती है तो रमेश मेंदोला, सुदर्शन गुप्ता, रंजना बघेल, यशपाल सिंह सिसौदिया और ओमप्रकाश सकलेचा के नाम मंत्रीपद के दावेदारों के रूप में चर्चा में आ जाते हैं लेकिन किसी न किसी बहाने से क्षेत्र उपेक्षित रह जाता है।
विन्ध्य की भारी उपेक्षा
भाजपा सरकार में विन्ध्य लंबे समय से उपेक्षित है। पूरे इलाके से सिर्फ राजेंद्र शुक्ल ही एकमात्र मंत्री हैं। शहडोल से सांसद बने ज्ञानसिंह ने मंत्री पद छोड़ा तो उसकी भरपाई भी नहीं हो पाई। हर्ष सिंह मंत्री तो हैं पर बिना विभाग के। लंबे समय से वे अस्वस्थ चल रहे हैं। वहीं मंत्री पद के दावेदारों में केदार शुक्ला, रामलाल रौतेल को मंत्री बनाए जाने की चर्चा कैबिनेट विस्तार के समय होती है लेकिन परिणाम शून्य रहता है।
महाकोशल में भी असंतुलन
महाकोशल को भी सरकार में प्रतिनिधित्व भाजपा विधायकों को संख्या की दृष्टि से कम है। कांग्रेस आए संजय पाठक को जब से मंत्री बनाया गया तब से यहां के विधायकों में असंतोष और बढ़ गया है। अंचल सोनकर, मोती कश्यप की कैबिनेट में दावेदारी सिर्फ चर्चाओं तक ही सीमित रही ।
मध्यभारत-ग्वालियर में एक जिले से तीन मंत्री
कैबिनेट में भौगोलिक संतुलन इस कदर गड़बड़ाया है कि प्रदेश के रायसेन जिले से एक नहीं तीन-तीन मंत्री हैं। रामपाल सिंह, डा गौरीशंकर शेजवार और सुरेंद्र पटवा एक जिले से मंत्री हैं। ग्वालियर जिले से भी माया सिंह, जयभान सिंह पवैया और नारायण सिंह कुशवाह तीन मंत्री हैं। दूसरी तरफ 24 जिले ऐसे हैं जहां का कैबिनेट में प्रतिनिधित्व ही नहीं है। भोपाल से उमाश्कर गुप्ता और विश्वास सारंग दो मंत्री हैं।