राकेश दुबे@प्रतिदिन। जिन राज्यों ने वित्त आयोग के लिए तय किए गए दायरे का सावधानी से विश्लेषण किया है, उन्होंने विरोध का झंडा उठा लिया है। शुरुअत हुई केरल की पहल पर बुलाई गई दक्षिणी राज्यों की बैठक से। पांच राज्यों और केंद्रशासित पुदुच्चेरी में से, तमिलनाडु और तेलंगाना गैरहाजिर थे। अगर तमिलनाडु की अनुपस्थिति के पीछे भाजपा का भय था, तो तेलंगाना भाजपा से सबंधों को लेकर अपनी दुविधा के कारण गैरहाजिर रहा।वित्त आयोग के लिए तय किए गए दायरे के से कई सवाल उठे हैं। जिनके जवाब केंद्र की ओर से आना चाहिए।
१. जैसे संविधान के अनुच्छेद २९०[३] (बी) के तहत यह वित्त आयोग का कर्तव्य है कि वह इस संबंध में सिद्धांत बनाये । व्ही संविधान के अनुच्छेद २७५ के तहत यह संसद का अधिकार है कि वह उ्न अनुदानों को मुहैया कराने के लिए कानून बनाए। कार्यपालिका (यानी केंद्र सरकार) इस प्रक्रिया को निष्फल करने का प्रयास कैसे कर सकती है?
२. न्यू इंडिया-२०२२ क्या है? यह किसी विकास कार्यक्रम का हिस्सा नहीं है जिस पर राष्ट्रीय विकास परिषद या संसद ने अपनी मुहर लगाई हो। पंद्रहवां वित्त आयोग ३० अक्टूबर २०१९ तक अपनी रिपोर्ट सौंपेगा; उसके काफी पहले, अप्रैल-मई २०१९ में आम चुनाव होंगे। ऐसे कोई राज्य इस न्यू इण्डिया-२०२२ पर कैसे विश्वास करे ?
३. महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि वे कौन-से राज्य हैं जो ‘जन्म दर घटाने की दिशा में की गई प्रगति’ से लाभान्वित होंगे? इसमें निश्चित रूप से वे राज्य नहीं होंगे जो काफी साल पहले ही इस दिशा में प्रगति कर चुके हैं। उन्होंने वह लक्ष्य स्वास्थ्य, शिक्षा और परिवार नियोजन पर अधिक खर्च करके हासिल किया है, पर अब उन्हें अपनी जनता की स्वास्थ्य व शिक्षा संबंधी जरूरतों पर खर्च करने के लिए कम राशि मिलेगी।
4. प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) और डिजिटल अर्थव्यवस्था ऐसे विषय हैं जिन पर हमेशा बहस की गुंजाइश थी है और रहेगी।
५. ‘लोकलुभावन कदम’ क्या है? जब कामराज ने तमिलनाडु के स्कूलों में मिड-डे मील की शुरुआत की थी, तो लोकलुभावन कदम कह कर उसकी आलोचना की गई थी; आज यह एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है।
६. वर्ष १९७१ के आंकड़ों को छोड़ देने और २०११ के आंकड़ों को हिसाब में लेने के से - आंध्र व तेलंगाना को २४३४० तमिलनाडु को २२४९७, केरल को २० ,२८५, पश्चिम बंगाल को २०,०२२ ,उड़ीसा को १८, ५४५, कर्नाटक को ८,३७३ और असम को ५,१३६ करोड़ के नुकसान का अनुमान लगया जा रहा है। इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया जा रहा है।
‘ज्यादा आबादी वाले और ज्यादा गरीब राज्यों’ को ‘उद्यमी व विकसित राज्यों’ के खिलाफ खड़ा करके समानता की बात कैसे की जा सकती है। देश के सभी राज्यों में गरीबी और विकास संबंधी विसंगतियां हैं। उनका समाधान निष्पक्ष ढंग से और संघीय ढांचे को चोट पहुंचाए बगैर करने का प्रयास होना चाहिए। तभी “सबका साथ और सबका विकास” का नारा सार्थक होगा।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।