
भाजपा असमंजस में है। एक और संघ प्रमुख की यह बात और दूसरी और विपक्ष के एकता प्रयास। ममता बनर्जी से मिलने वालों में पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, शत्रुघ्न सिन्हा और अरुण शौरी भी रहे हैं । यशवंत और शत्रुघ्न ने तो खुलकर स्वीकार भी किया कि वे पार्टी से ज्यादा महत्वपूर्ण देश को मानते हैं और इसीलिए देश बचाने की खातिर ममता बनर्जी के अभियान का पूरा समर्थन करते हैं। तेलुगू देशम जैसे घटक दल के एनडीए छोड़ने और शिवसेना जैसे पुराने सहयोगी दल के साथ छोड़ने की घोषणाओं के बाद पार्टी के अंदर के असंतुष्ट तत्वों को अपनी ओर करने की विपक्ष की ये कोशिशें भी तो भाजपा के लिए चुनौती है। यह अनुमान सही नहीं है कि विपक्षी घुसपैठ इन पुराने चुके हुए नेताओं तक सीमित है। एससी/एसटी ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले से दलित सांसदों के भीतर मची खलबली आगे क्या रूप लेगी कहना मुश्किल है, भाजपा की एक सांसद सावित्री बाई फुले ने जिस तरह पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, वह बेहद अहम है। वैसे संघ की ओर से इस समय की जा रही टिप्पणी के व्यपक अर्थ है।
इन सबका यह अर्थ कदापि नहीं है कि विपक्षी एकता की राह की सारी मुश्किलें दूर हो गई हैं, और संघ भी समर्थन में आ गया है। अभी तो यह सवाल तय होना है कि विपक्षी मोर्चे का नेतृत्व किसके हाथों में रहेगा और राहुल गाँधी को कितने लोग नेता मानने को राजी होंगे और क्यों होंगे ?वैसे भी ऐसे सवाल कह-सुनकर नहीं, आखिरकार राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन से ही तय होते हैं, संघ जैसे सन्गठन की राय दिशा बदलती है। कर्नाटक और फिर राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के आगामी विधानसभा चुनाव परिणाम इस दृष्टिसे अहम होंगे।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।