राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत में एक आम कहावत है “घर का जोगी, जोगड़ा आन गाँव का सिद्ध”। हमारी सरकार और खास कर वर्तमान में केंद्र और अधिकतर राज्य सरकारें कोई बात तब तक नहीं मानती हैं, जब तक उस पर कोई विदेशी ठप्पा न लगा हो। देश के हर कौने से मीडिया के साथ बुरे बर्ताव की हर दिन आती शिकायतें नजर अंदाज़ की जा रही है। इन पर कोई गौर करने को तैयार नहीं है। अब सरकार कुछ सोचने को मजबूर हो जाये, क्योंकि अमेरिका में ट्रंप प्रशासन की एक रिपोर्ट ने कहा है कि “भारत में जो मीडिया संस्थान सरकार की आलोचना कर रहे हैं, उन्हें परेशान जा रहा किया है।” यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ने वार्षिक ह्यूमन राइट्स रिपोर्ट पेश करते हुए कहा, 'भारत का संविधान फ्रीडम ऑफ स्पीच और एक्सप्रेशन की आजादी तो देता है, लेकिन यह स्पष्ट रूप से प्रेस की स्वतंत्रता का जिक्र नहीं करता है। भारत में सरकार इन अधिकारों का सम्मान करती है, लेकिन ऐसे कई उदाहरण है, जिनमें सरकार ने कथित तौर पर सरकार के आलोचनात्मक मीडिया आउटलेट को दबाया या परेशान करने की कोशिश की है।'
मीडिया वॉचडॉग द हूट्स इंडिया फ्रीडम रिपोर्ट ने जनवरी २०१६ और अप्रैल २०१७ के बीच मामलों का विवरण देते हुए कहा है कि इस दौरान ५४ पत्रकारों पर कथित रूप से हमला किया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार द्वारा तीन टेलीविजन समाचार चैनल को बैन किया जा चुका है, ४५ इंटरनेट शटडाउन और ४५ व्यक्तियों और समूहों के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज किया गया है।
इस रिपोर्ट में एनडीटीवी के खिलााफ सीबीआई रेड, हिंदुस्तान टाइम्स के एडिटर बॉबी घोष की बर्खास्तगी और कार्टूनिस्ट जी बाला की गिरफ्तारी का भी जिक्र है। इस रिपोर्ट में पत्रकार और कार्यकर्ता गौरी लंकेश और टीवी पत्रकार सांतौ भौमिक की हत्या के बारे में भी सूचना है । अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट ने कहा कि २०१७ में कई पत्रकारों को अपनी रिपोर्टिंग के वक्त बदसलूकी के साथ-साथ हिंसा का शिकार भी होना पड़ा है। स्टेट डिपार्टमेंट ने एक एजेंसी रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि कई महिला पत्रकारों को रोजाना मोबाइल और ऑनलाइन के जरिए परेशान किया जा रहा है। ट्रोल्स कई महिला पत्रकारों को हर रोज ट्विटर पर हजारों गालियां देते हैं। व्यापक भ्रष्टाचार, कुछ राज्यों में राजनीतिक कैदियों की रिपोर्ट, मीडिया पर सेंसरशिप व उत्पीड़न और सरकार की कुछ आलोचना करने वालों को परेशान किया जा रहा है।
भारत के स्वभाव के अनुसार सरकार अब फौरन कोई जाँच आयोग, समिति या इस जैसा कुछ अपने चेहरे में गहराते दाग को साफ करने के लिए करेगी। काश पहले अपनों की सुनते तो बात इतनी दूर तक नहीं जाती।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।