
तब कांग्रेस अति आत्मविश्वास में थी, अब भाजपा। तब कांग्रेस सब में से सब जीतने की बात कर रही थी अब भाजपा के नव नियुक्त अध्यक्ष “इस बार दो सौ पार” की बात कह रहे हैं। वैसे अभी कोई भी दावा ठीक नहीं है, मतदाताओं की मर्जी भी कुछ होती है और उसके निर्णय ही सरकार बनाते बिगाड़ते हैं।
प्रदेश कांग्रेस में पिछले कुछ सालों से लीडर का अभाव था। किसी को वय में छोटा मान, किसी को अनुभव में कम मान, पिछले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों को पूरा समर्थन नहीं मिला। इस बार दिग्विजय सिंह मुख्य भूमिका में नहीं दिख रहे हैं, लेकिन अरुण यादव ने इस बार दिग्विजय सिंह की राह का अनुसरण करते हुए चुनाव न लड़ने की बात कही है। वे सन्गठन का काम करना चाहते हैं, कितनी गंभीरता से कर पाएंगे, एक सवालिया निशान है। कांग्रेस हाई कमान होश और जोश को साधने की कोशिश की है। अरुण यादव को लम्बे समय से बदलने की बात चल रही थी। रोशनपुरा स्थित कांग्रेस कार्यालय से कांग्रेस को गायब करने का तमगा उनके सर लग गया। भोपाल शहर के पुराने कांग्रेसियों को वह संघर्ष याद है रोशनपुरा का कार्यालय कैसे बचा था। अब जवाहर भवन बाज़ार हो गया है। पार्टी कार्यालय नहीं।
चुनाव की दहलीज पर खड़े मध्यप्रदेश में तीसरी ताकत नहीं है। किसी एक कौने से ज्यादा, उनकी ताकत कहीं दिखती नहीं है। कांग्रेस ने होश-जोश का नया फार्मूला आगे किया है तो भाजपा भी कमर कसती दिखती है, प्रदेश कार्यालय में कम मुख्यमंत्री निवास जोरों से तैयारी शुरू हो गई है। किसान वर्ग जिसकी नाराजी की खबरें प्रदेश के कौनों से आ रही है, उन्हें मनाने के लिए श्रीमती साधना सिंह का एक आडियो कैसेट वायरल हुआ है। वे किसान एकता के गीत गा रही है। चुनाव के लिए राजनीतिक दलों के प्रयास अनुनय विनय पर मतदाता की मुहर सर्वोपरि होती है। यह मुहर किसी को “दिग्विजयी” बना सकती है, तो किसी का “बंटाढार” कर सकती है। समय है, अभी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
मध्यप्रदेश का भविष्य किसके हाथों में सुरक्षित है— Bhopal Samachar (@BhopalSamachar) April 28, 2018