
देश में एक अजीब सा माहौल बन गया है, आज निजी कंपनियां अपना हर कदम फूंक-फूंककर रख रही हैं और सरकारी खर्च ही अर्थव्यवस्था का इंजन बना हुआ है। खासकर इंफ्रास्ट्रक्चर पर सरकार का काफी जोर है। बीते वित्त वर्ष में देश में नैशनल हाइवे का निर्माण १०,००० किलोमीटर के रेकॉर्ड लेवल पर पहुंच गया। सड़कों का ठेका देने और उन पर काम शुरू कराने में सरकार ने विशेष तत्परता दिखाई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले चार महीनों में अर्थात २०१८ में रोजाना औसतन २७.५ किलोमीटर सड़कें बनाई गईं, जबकि सड़कों के ठेके देने की रफ्तार लगभग ४६ किलोमीटर रोजाना है । इससे एक बड़े वर्ग को रोजी-रोजगार मिला है। इसके विपरीत जो क्षेत्र भारत में सबसे ज्यादा रोजगार देता आया है, वह आज भी काफी सुस्ती दिखा रहा है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ मार्च में पांच माह के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। निक्केई इंडिया पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) में कहा गया कि मैन्युफैक्चरिंग में यह गिरावट बिजनस ऑर्डर बढ़ने की धीमी रफ्तार और कंपनियों की ओर से कम लोगों को काम पर रखने की वजह से आई है।
२०१८ के मार्च में मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई गिरकर ५१.० पर पहुंच गया, जो पिछले पांच महीनो में सबसे कम है। वैश्विक स्थितियां भी अनुकूल नहीं चल रही हैं। देश के निर्यात पर 'ग्लोबल ट्रेड वॉर' का असर पड़ सकता है। भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल (एसोचैम) ने कहा है कि अमेरिका द्वारा उठाए जा रहे कदमों का भारत पर भले ही कोई प्रत्यक्ष असर न हो, लेकिन परोक्ष रूप से अर्थव्यवस्था जरूर प्रभावित होगी। विदेशी मुद्राओं की कीमतों में उथल-पुथल का संभवत: भारत के निर्यात पर बुरा असर पड़े। इस स्थिति से निपटने के लिए तत्काल कोई रणनीति बनानी होगी। निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए भी कुछ उपाय करने होंगे। एक बात तो तय है कि घरेलू आर्थिक अनिश्चितता कम होने से इकॉनमी में हलचल दिख रही है| इन आंकड़ो से सरकार खुश हो सकती है, लेकिन जनता नहीं। उसके लिए महंगाई और बेरोजगारी बड़ी समस्या है और अभी सरकार के पास कोई निश्चित योजना नहीं है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।