राकेश दुबे@प्रतिदिन। सार्वजनिक क्षेत्र के घोटालों में सरकार के हाथ कुछ नहीं लगा। अब निजी क्षेत्र की पोल खुली है कि निजी क्षेत्र में भी हालत कुछ बेहतर नहीं है। आईसीआईसीआई-वीडियोकॉन का मामला सुर्खियों में है। ये घोटाले इन्फोसिस को हिला कर रख देने वाले घोटाले से किसी भी तरह कम नहीं है। इन मामलों में देश के सबसे बड़े निजी बैंक और दूसरी सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी ने मुख्य कार्याधिकारियों की अनियमितताओं की जांच जारी है और इनके आला अधिकारी कुर्सी पर जमे हुए हैं।
जो होना था उसके विपरीत यह है कि सिक्का को पनाया सौदे की जांच तथा अन्य विवादों के दौरान खुद को पूरे प्रकरण से दूर रखना चाहिए था और इस समय कोचर को यही करना चाहिए, पर दोनों अपनी जगह से नहीं हिले |दोनों मामलों में अपारदर्शी तरीके से क्लीन चिट प्रदान की गई। सत्यम मामले के बाद पता ही है कि कॉर्पोरेट बोर्ड को लेकर कैसी सतर्कता बरती जाती है। ऐसे में क्या अंशधारकों को सीईओ के बारे मे कंपनी की राय माननी चाहिए? इसके अलावा क्या जब समस्या से जुड़ा सीईओ पद पर आसीन है तो क्या जांच को निष्पक्ष माना जा सकता है?
पिछले साल जून में इन्फोसिस प्रबंधन ने घोषणा की थी कि दो व्हिसल ब्लोअर के आरोपों की जांच के लिए गठित स्वतंत्र एजेंसी ने प्रबंधन को तमाम आरोपों से बरी कर दिया है। हालांकि यह समिति भी कंपनी के प्रवर्तक एन आर नारायण मूर्ति के इस बात की सार्वजनिक चर्चा के बाद गठित की गई थी। कंपनी की वेबसाइट पर निष्कर्षों का संक्षिप्त ब्योरा दिया गया है। कंपनी आज भी पूरी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं कर रही है। उसका कहना है कि इससे भविष्य की जांच में व्हिसल ब्लोअर का खरापन प्रभावित होगा। सिक्का भले ही जानबूझकर बेईमानी करने की जगह गलत निर्णय लेने के दोषी रहे हों लेकिन अगर वह प्रबंधन से बाहर होते तो जांच कहीं अधिक मजबूत हो सकती थी। एक महीने की उठापटक के बाद सिक्का और अन्य बोर्ड सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया और नंदन नीलेकणी के गैर कार्यकारी चेयरमैन बनने का रास्ता साफ हो गया।
आईसीआईसीआई बैंक में अब तक केवल चेयरमैन एम के शर्मा का वक्तव्य आया है कि आंतरिक जांच में कोचर के पति और वीडियोकॉन के कारोबारी सौदों और वीडियोकॉन को दिए ऋण में कोई लेनदेन जैसी बात साबित नहीं हुई है। शर्मा ने जोर देकर कहा कि चंदा कोचर को जांच तक पद से हटने की कोई आवश्यकता नहीं है लेकिन इससे खुद कोचर को कोई फायदा नहीं हुआ। अब बैंक के पूर्व चेयरमैन और प्रबंध निदेशक एन वाघल उनके बचाव में सामने आए हैं। आईसीआई बैंक को भ्रम दूर करने के लिए सारी बात सार्वजनिक करनी चाहिए। अगर ऐसा होता तो कोचर केंद्रीय जांच ब्यूरो की प्रारंभिक जांच से भी बच सकते थे। सवाल यह भी है कि सीबीआई को एक निजी सौदे की जांच करने की आवश्यकता क्यों पड़ी। तमाम बातों के बीच देखा जाए तो अपर्याप्त खुलासों और कोचर के अपने पद पर बने रहने से अंशधारकों के मन में अनेक सवाल उठने लगे हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।