नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बयान के बाद यह संदेह मजबूत हो गया है कि पीएम नरेंद्र मोदी सरकार प्रमोशन में आरक्षण को बरकरार रखने के लिए अध्यादेश ला रही है। बता दें कि ज्यादातर राज्यों की सरकारें हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में 'प्रमोशन में आरक्षण' की लड़ाई हार चुकीं हैं। दोनों कोर्ट ने 'प्रमोशन में आरक्षण' को अनीतिगत एवं अन्यायपूर्ण बताया है। कोर्ट में नौकरी में आरक्षण को सरकार का अधिकार बताया परंतु 'प्रमोशन में आरक्षण' के सभी आदेशों को खारिज कर दिया। बता दें कि अनारक्षित कर्मचारी इस मामले में लामबंद हो चुके हैं। यदि अध्यादेश लाया गया तो कर्मचारियों के बीच वर्ग संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
बता दें कि प्रमोशन में आरक्षण के ज्यादातर नियम कांग्रेस सरकारों के समय बने थे और उसी समय राज्यों की हाईकोर्ट में इन्हे चुनौतियां भी दी गईं परंतु जब फैसले आए तब राज्यों में भाजपा की सरकार थी। कमावेश भारत के ज्यादातर राज्यों में कोर्ट ने 'प्रमोशन में आरक्षण' खत्म कर दिया है। अब रूठे दलितों को मनाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार 'प्रमोशन में आरक्षण' के लिए अध्यादेश लाकर इसे दलितों का अधिकार बनाने पर विचार कर रही है।
सरकार आरक्षण पर बल देगी
भाजपा की सहयोगी पार्टी लोजपा के अध्यक्ष पासवान ने कहा कि पदोन्नति में दलित समुदायों के आरक्षण पर सरकार बल देगी। इन समुदायों से जुड़े मुद्दों पर केंद्र सरकार ने मंत्रियों का एक दल गठित किया है। इस दल के सदस्य पासवान ने कहा कि सरकार के पास अध्यादेश लाने का विकल्प खुला हुआ है, लेकिन पहले वह शीर्ष अदालत में जाएगी। पासवान ने कहा कि राजग सरकार ने हाल ही में अनुसूचित जाति- जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम पर शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर की है।
विश्वविद्यालयों में आरक्षण
जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के विरुद्ध भी विशेष अनुमति याचिका दायर की है जिससे विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या घट गयी है।
राजग सरकार दलित हितैषी
लोजपा सुप्रीमो ने कहा, ‘जितना राजग सरकार ने दलितों के लिए किया है, उतना किसी ने भी नहीं किया। हम इस बात के लिए कटिबद्ध हैं कि उनके हितों को नुकसान नहीं पहुंचे।’
नाजुक मौके पर हुई घोषणा
केंद्रीय मंत्री की घोषणा ऐसे समय में आयी है जब सरकार ने उच्चतम न्यायालय के दो आदेशों के खिलाफ अर्जियां देने का फैसला किया है। सरकार ने दलील दी है कि उच्चतम न्यायालय के ये आदेश अनुसूचित जाति और जनजाति के हितों के विरुद्ध काम करेंगे।
आगामी चुनाव और पार्टी की साख
कई दलित संगठनों के आंदोलन चलाने और विपक्षी दलों द्वारा भाजपा को निशाना बनाये जाने के बीच सरकार अपनी दलित समर्थक साख बढ़ाना चाहती है। पार्टी 2019 के आम चुनाव समेत कई विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुटी है और उसमें इन समुदायों के वोट उसकी तकदीर के लिए अहम होंगे।
इसलिए लागू नहीं हुई व्यवस्था
पासवान ने कहा कि अदालत ने पदोन्नति में अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए आरक्षण के पक्ष में व्यवस्था दी थी लेकिन उसने कई शर्तें भी लगा दीं जिससे आरक्षण दिशा-निर्देशों को लागू नहीं किया जा सका।
पिछड़ेपन और कार्यकुशलता की जांच
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इन दिशा-निर्देशों के अनुसार राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकार को पदोन्नति में आरक्षण नियमों का लाभ पाने जा रहे कर्मचारियों के पिछड़ेपन और कार्यकुशलता की जांच करनी होगी।
दोनों शर्तें अनावश्यक
पासवान ने कहा कि संविधान अनुसूचित जातियों- जनजातियों को पिछड़ा मानती है, और अनुसूचित जाति-जनजाति कर्मचारी दूसरों की भांति कार्यकुशल हैं ऐसे में दोनों शर्तें अनावश्यक हैं।