
गत वर्ष हाईकोर्ट द्वारा भी शासन को 90 दिनों मैं पटवारीयों की मांगों का निराकरण करने के निर्देश दिए थे किंतु शासन ने कोई कार्यवाही नहीं की हैं। इसके अलावा 2017 में भी पटवारियों के द्वारा अपनी मांगों को लेकर आंदोलन किया था तब सरकार के एक जिम्मेदार ओर वरिष्ठ मंत्री में 15 मई तक मांगो के आदेश जारी करने को कहकर हड़ताल समाप्त कराई थी । लेकिन सरकार ने अपने ही मंत्री की बात को झूठा साबित कर दिया।और ये सिध्द कर दिया कि सरकार की कथनी और करनी में अंतर है।
मध्यप्रदेश के पटवारी अपने मूल भू अभिलेख विभाग के अतिरिक्त 21 अन्य विभागों के कार्य भी संपादित करता हैं। प्रदेश सरकार द्वारा पटवारीयों की मांगों को समय समय पर जायज माना हैं किंतु उनका निराकरण आज तक नहीं किया जाना दुखद हैं।
विभागीय संरचना मैं पटवारीयों से तहसीलदार तक के ग्रेड पे मैं पहले 500 रूपयों का अंतर था जिसमें अब बीच की दो ग्रेड पे रिक्त हैं जिसे शासन द्वारा स्वीकार तो किया जा रहा है किंतु दूर नहीं किया जा रहा हैं। इन सब से त्रस्त होकर प्रदेश के पटवारी फिर आंदोलन की राह पर चल निकले हैं। आंदोलन के प्रथमचरण मैं पटवारीगण प्रदेश भर मैं कल सोमवार को चरणबद्ध आंदोलन का ज्ञापन जिलाधीशों को सौंपेंगे। पंद्रह दिनों बाद रैली, धरना से लेकर सामूहिक अवकाश भी लेंगे।
पटवारी किसानों से जुड़ा हुआ पद है और किसानो के सभी काम पटवारी के दफ्तर से होकर गुजरते है ऐसे में पटवारी आंदोलन से फिर किसानों की मुसीबतें बढ़ सकती है लेकिन सरकार मौन है। चुनावी साल में सरकार को किसानों की अनदेखी ओर किसानों से जुड़े कर्मचारियों की अनदेखी करना भारी पड़ सकता है। देखना ये है कि पटवारियों के ज्ञापन के बाद सरकार क्या निर्णय लेती है।