नई दिल्ली। कर्मचारी भविष्य निधि के आंकड़े जारी हुए हैं। सितंबर 2017 से लेकर फरवरी 2018 तक कुल 30 लाख से ज्यादा कर्मचारी ईपीएफ से जुड़े हैं। प्रचारित किया जा रहा है कि 6 माह में 30 लाख नई नौकरियां मिलीं हैं परंतु यह पूर्ण सत्य नहीं हैं। यह मोदी सरकार की सफलता नहीं चिंता का विषय है। ईपीएफ में हर साल औसत 1.5 करोड़ कर्मचारी जुड़ते हैं। 6 माह में इनकी संख्या 75 लाख होनी चाहिए जबकि यह केवल 30 लाख रह गई अत: इसी अनुपात को आधार मानें तो तुलनात्मक 45 लाख नौकरियां कम रह गईं। बेरोजगारी बढ़ी है। दरअसल, ईपीएफ के आंकड़ों का विश्लेषण ही गलत हो रहा है। दोनों ही तर्क अर्ध सत्य हैं।
कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) के आंकड़ों के मुताबिक सितंबर 2017 से लेकर फरवरी 2018 तक (छह महीनों में) 30 लाख से ज्यादा कर्मचारी ईपीएफ से जुड़े हैं। ईपीएफओ के डाटा से पता चलता है कि फरवरी में कुल 4 लाख 72 हजार 75, जबकि जनवरी में कुल 6 लाख 4 हजार 557 कर्मचारी फंड से जुड़े। आंकड़े के मुताबिक सितंबर से फरवरी तक कुल 31 लाख 10 हजार नए कर्मचारी ईपीएफओ से जुड़े हैं।
इसका एक तात्पर्य यह भी लगाया जा रहा है कि देश भर में रोजगार बढ़ा है।
दूसरा यह है कि कर्मचारी पीएफ की तरफ आकर्षित होने लगे हैं क्योंकि इसमें एफडी से ज्यादा ब्याज मिलता है।
तीसरा यह कि कार्यालय कर्मचारी भविष्य निधि का डंडा ऐसी संस्थाओं पर जमकर चला है जो अब तक अपने कर्मचारियों का पीएफ अंशदान नहीं कर रहीं थीं।
1.5 करोड़ नए लोग जुड़ते हैं हर साल
देश में हर साल 1.5 करोड़ नए लोग जॉब मार्केट में आते हैं। लेकिन, देश की आबादी के अनुपात में नई नौकरियों की यह दर कम है। यदि उपरोक्त को आधार मान लिया जाए तो एक साल में मात्र 60 लाख लोग ही जुड़ेंगे। यह तो आधे से भी कम रह गया।
सरकार दे रही राहत
बड़े श्रमबल को संगठित क्षेत्र से जोड़ने के लिए सरकार ने इस वर्ष घोषणा की है कि ईपीएफ में नियोक्ता का हिस्सा वह खुद वहन करेगी। सरकार ने कहा कि वह कर्मचारियों के वेतन का 12 फीसदी तक अपने फंड से देगी।