नेत्रहीन छात्राओं के कपड़े फाड़ रही थी भीड़, मैने बचाना चाहा तो...: अनुभव दीक्षित | GWALIOR NEWS

Bhopal Samachar
ग्वालियर। जेएएच के न्यूरोसर्जरी विभाग के कमरा नंबर 6 में भर्ती 17 साल के अनुभव दीक्षित 2 अप्रैल को हुई हिंसा में घायल हो गए थे। अनुभव ने 2 अप्रैल को उनके साथ हुए घटनाक्रम को बयां किया है। उन्होंने बताया कि भीड़ हैवानियत की हद तक चली गई थी। वो केवल आने जाने वालों से मारपीट ही नहीं कर रही थी बल्कि लड़कियों के साथ गंदी हरकतें भी कर रही थी। अनुभव ने बताया कि मु्झ पर हमला तब हुआ जब मैं नेत्रहीन छात्राओं को बचाने गया। भीड़ उनके कपड़े फाड़ रही थी। 

अनुभव ने बताया कि 2 अप्रैल को मुरार की सड़कों पर भीड़ तांडव कर रही थी। मेरी बहन आकांक्षा बारादरी चौराहा पर फंसी हुई थी। उसका फोन आया तो मैं बाइक लेकर उस तरफ चला गया। बहन को लेकर आजाद नगर की गली के बाहर पहुंचा ही था कि चारों तरफ से उन्मादी भीड़ के बीच हम फंस गए। लाठी-हथियारों से लैस भीड़ हमारी तरफ बढ़ रही थी। मैंने बहन को कवर किया और उसे पीछे से गली की तरफ दौड़ने को बोला। बहन गली में दौड़ी, मैं भी उसके पीछे भागना चाहता था लेकिन पलटकर देखा कि एक वैन पर भीड़ हमला कर रही थी। उसके ड्राइवर को बेरहमी से पीट रही थी। उसमें से दो नेत्रहीन बालिकाएं निकलीं।

मैं कुछ समझ पाता कि इतने में उन्मादी भीड़ उन नेत्रहीन बालिकाओं के कपड़े फाड़ने लगी। सच बता रहा हूं कि मैं उस वक्त बहुत डरा हुआ था लेकिन नेत्रहीन बालिकाओं से हो रही इन हरकतों को देखकर मुझसे वहां से भागा नहीं गया। उन्हें बचाने आगे आया तो भीड़ ने मुझ पर हमला कर दिया।

घायल को अस्पताल तक नहीं ले जा पाए
हमले में घायल हुए अनुभव दीक्षित 5 दिन बाद बोल पाने की स्थिति में आए हैं। डॉक्टरों ने उनके माथे के पास फ्रेक्चर होना बताया है। अनुभव बताते हैं कि मैं हिंसक भीड़ की तरफ दौड़ा, उसमें फंसी नेत्रहीन बालिकाओं के हाथ पकड़कर उन्हें सामने स्थित गर्ल्स कॉलेज के गेट के अंदर कर सुरक्षित किया लेकिन इतने में ही एक रॉड से मेरे चेहरे पर जोरदार वार हुआ। मैं वहीं गिर पड़ा। कुछ देर बाद आजाद नगर के हमारे पड़ोसी दौड़ते हुए मुझे बचाने आए। अनुभव की मां अनीता दीक्षित बताती हैं कि अनुभव को घर लाए तो इसे चार बार खून की उल्टियां हुईं। हम इसे तुरंत हॉस्पिटल ले जाना चाहते थे लेकिन सड़क पर उन्मादी भीड़ थी।

पुलिस सिर्फ तमाशा देख रही थी
सुबह 11 बजे से लेकर हमें दोपहर 2.30 बजे तक भीड़ के कंट्रोल में आने का इंतजार करना पड़ा, तब जाकर हम बाइक से अनुभव को लेकर सिविल हॉस्पिटल मुरार ले जा पाए। अनुभव पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि वैसे हर रोज सफारी गाड़ी में पुलिस घूमते हुए सड़कों पर मिलेगी लेकिन उस दिन भीड़ को रोकने के लिए सिर्फ 20-22 पुलिसकर्मी सड़कों पर थे। जो सिर्फ खड़े होकर तमाशा देख रहे थे। 

पुलिस पर भी ब्लैड से हमला हुआ
अनुभव बताते हैं कि पुलिस की इस नाकामी का खामियाजा हमारे जैसे आम लोगों ने ही नहीं बल्कि खुद पुलिस कर्मचारियों ने भी भुगता। मुरार थाने के टीआई और सिपाहियों पर ब्लेड से हमले होते मैंने देखे। उल्लेखनीय है कि नेत्रहीन बालिकाओं व बहन को बचाने के लिए अनुभव दीक्षित द्वारा दिखाई गई इस बहादुरी के लिए मोतीमहल के मान सभागार में चीफ सेक्रेटरी व डीजीपी द्वारा बुलाई गई बैठक में उन्हें सम्मानित किए जाने पर चर्चा हुई।

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