भोपाल। शिवराज सिंह सरकार का विरोध कर रहे बाबाओं को अचानक राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया गया। यह मामला सीएम शिवराज सिंह के लिए परेशानी का सबब बन गया है। देश भर में इस मुद्दे पर शिवराज सरकार की निंदा की गई। अब हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने मध्यप्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर पूछा है कि उन्हें किस आधार पर यह दर्जा दिया। बता दें कि मप्र सरकार ने नर्मदानंद, हरिहरानंद, कम्प्यूटर बाबा, भय्यू महाराज और पं. योगेंद्र महंत को राज्यमंत्री का दर्जा दिया था। ये सभी संत सरकार द्वारा गठित विशेष समिति के सदस्य बनाए गए हैं।
इस निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। याचिका में सरकार के कदम की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए हैं। कहा है कि प्रदेश की जनता पर पहले से 90 हजार करोड़ का कर्जा है। पांच संतों को राज्यमंत्री का दर्जा देकर सरकार जनता पर कर का बोझ और बढ़ा रही है।
यह याचिका रामबहादुर वर्मा ने एडवोकेट गौतम गुप्ता के माध्यम से दायर की थी। इसमें कहा है कि पहले से मंत्री परिषद गठित होने के बावजूद पांच संतों को राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया गया। इससे प्रदेश की जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा।
सर्वे के मुताबिक राज्य के हर नागरिक पर औसतन 14 हजार रुपए कर्जा है। संतों को राज्यमंत्री का दर्जा देने के साथ ही उन्हें भत्ते व अन्य सुविधाएं भी मिलने लगेंगी। इसका आर्थिक बोझ प्रदेश की जनता पर आएगा। सरकार ने यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि राज्यमंत्री का दर्जा देने के लिए किस आधार पर चयन किया गया। जिन संतों को यह दर्जा दिया गया है वे कुछ दिन पहले तक सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे।