अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है आज भी वह इस पृथ्वी पर घोर तपस्या में लीन हैं। राजस्थान में एक मंदिर ऐसा भी है जिसका निर्माण स्वयं भगवान परशुराम ने अपने फरसे के वार से किया था। इस मंदिर को टांगीनाथ धाम एवं परशुराम महादेव गुफा मंदिर भी कहते हैं। बताया जाता है कि यह एक चमत्कारी मंदिर है। यहां शिवलिंग के पास एक छिद्र है। यदि आप शिवलिंग पर जलाभिषेक करेंगे तो सारा पानी छिद्र में समा जाएगा परंतु यदि आप शिवलिंग का अभिषेक दूध से करेंगे तो वह छिद्र के भीतर नहीं जाता।
मान्यता है अरावली की पहाड़ियों के गुफा में परशुराम ने अपने फरसे के वार से चट्टान पर मंदिर का निर्माण कर दिया था। इस गुफा के अंदर एक स्वयंभू शिवलिंग है। जहां पर परशुराम ने भगवान शिव की तपस्या की थी। परशुराम की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें फरसा, धनुष और अक्षय तरकश दिया था। इस तरकश के तीर कभी भी खत्म नहीं होते थे।
गुफा में स्थित शिला पर एक राक्षस की आकृति बनी हुई है जिसका अंत परशुराम ने ही किया था। परशुराम महादेव मंदिर राजस्थान के राजसमंद जिले मे गुफा में स्थित है। शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि इस पर जल चढ़ाने से सारा पानी इसके अंदर समा जाता है लेकिन दूध चढ़ाने पर छिद्र में नहीं समाता है। इसका रहस्य आज भी बना है।
स्वयं भू शिवलिंग है, फरसे से चट्टान को काटकर रास्ता बनाया था
अरावली की सुरम्य पहाड़ियों में स्तिथ परशुराम महादेव गुफा मंदिर का निर्माण स्वंय परशुराम ने अपने फरसे से चट्टान को काटकर किया था। इस गुफा मंदिर तक जाने के लिए 500 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है। इस गुफा मंदिर के अंदर एक स्वयं भू शिवलिंग है जहां पर विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने भगवान शिव की कई वर्षो तक कठोर तपस्या की थी। तपस्या के बल पर उन्होंने भगवान शिव से धनुष, अक्षय तूणीर एवं दिव्य फरसा प्राप्त किया था।
इसे मेवाड़ के अमरनाथ भी कहते हैं
हैरतअंगेज वाली बात यह है कि पूरी गुफा एक ही चट्टान में बनी हुई है। ऊपर का स्वरूप गाय के थन जैसा है। प्राकृतिक स्वयं-भू लिंग के ठीक ऊपर गोमुख बना है, जिससे शिवलिंग पर अविरल प्राकृतिक जलाभिषेक हो रहा है। मान्यता है कि मुख्य शिवलिंग के नीचे बनी धूणी पर कभी भगवान परशुराम ने शिव की कठोर तपस्या की थी। इसी गुफा में एक शिला पर एक राक्षस की आकृति बनी हुई है। जिसे परशुराम ने अपने फरसे से मारा था। दुर्गम पहाड़ी, घुमावदार रास्ते, प्राकृतिक शिवलिंग, कल-कल करते झरने एवं प्राकृतिक सौंदर्य से ओत-प्रोत होने के कारण भक्तों ने इसे मेवाड़ के अमरनाथ का नाम दे दिया है।
कहां स्थित है :
परशुराम महादेव का मंदिर राजस्थान के राजसमन्द और पाली जिले की सीमा पर स्तिथ है। मुख्य गुफा मंदिर राजसमन्द जिले में आता है जबकि कुण्ड धाम पाली जिले में आता है। पाली से इसकी दुरी करीब 100 किलोमीटर और विशव प्रसिद्ध कुम्भलगढ़ दुर्ग से मात्र 10 किलोमीटर है।
इसकी समुद्र ताल से उचाई 3600 फ़ीट है। यहाँ से कुछ दूर सादड़ी क्षेत्र में परशुराम महादेव की बगीची है। गुफा मंदिर से कुछ ही मील दूर मातृकुंडिया नामक स्थान है जहां परशुराम को मातृहत्या के पाप से मुक्ति मिली थी । इसके अलावा यहां से 100 किमी दूर पर परशुराम के पिता महर्षि जमदगनी की तपोभूमि है।
स्थान से जुडी है कई मान्यता :
इस स्थान से जुडी एक मान्यता के अनुसार भगवान बद्रीनाथ के कपाट वही व्यक्ति खोल सकता है जिसने परशुराम महादेव के दर्शन कर रखे हो।
एक अन्य मान्यता गुफा मंदिर में स्तिथ शिवलिंग से जुडी है गुफा मंदिर में स्तिथ शिवलिंग में एक छिद्र हैजिसके बारे में मान्यता है कि इसमें दूध का अभिषेक करने से दूध छिद्र में नहीं जाता जबकि पानी के सैकड़ों घड़े डालने पर भी वह नहीं भरता और पानी शिवलिंग में समा जाता है। इसी जगह पर परशुराम ने दानवीर कर्ण को शिक्षा दी थी।
सावन में भरता है विशाल मेला :
परशुराम महादेव मंदिर में परशुराम जयंती पर तो कोई खास कायक्रम नहीं होता है लेकिन हर साल श्रावण शुक्ल षष्ठी और सप्तमी को यहां विशाल मेला लगता है।