Motivational story in Hindi - समय का पहिया ही उल्टा घूमा है

Bhopal Samachar
सुन्न से रह गये थे दुबे जी जब कल बड़े बेटे किशन ने शाम को उनसे कहा कि पापा...यह देखिए...यह मेरा अप्वाइंट मेंट लेटर...मुझे यहाँ से दोगुनी सेलरी की नौकरी दिल्ली में लग गई है। दोस्त को कह दिया था। वह एक घर किराये पर ठीक कर चुका है। कल ही निकलना होगा। ट्रेन टिकट कंफर्म हो चुके हैं और हाँ पापा, रजनी भी मेरे साथ जा रही है। रोज-रोज होटल का खाना मुझे पचता नहीं है।

समझ ही नहीं पाए थे दुबेजी कि बेटा आज्ञा मांग रहा था या अपना निर्णय सुना रहा था। कहा तो था कि बेटा यहाँ की नौकरी में क्या तकलीफ है। अपना घर अपना शहर है तो खर्च भी तो कम है। साथ रहने का सुकून भी तो है। कैसे झुंझलाकर कहा था किशन ने, तो मुझे बेड़िओं में बांध रखना चाहते है आप।
घर न छोड़ू, तरक्की छोड़ दूँ।
फिर कुछ न कहा गया...
रात भर दुबे-दुबाइन जी गुमिया कर आंसू बहाते रहे। बेटा-बहू सामान बाँधते रहे।

अभी ही स्टेशन से गाड़ी पर बिठाकर लौटे तो देखा कि पुराने जमाने से आज तक का... उनका दोस्त मिलने के लिए आया हुआ उनके इंतजार में बैठा है और दुबाइन जी अपने साड़ी के अचरा से आंसू पोंछ रही है।
कुछ वे कह पाते उसके पहले दोस्त ने ही कहा...मुझे मालूम है यार...बहुत बुरा लग रहा है न किशन का ऐसे ही छोड़कर जाना।
नहीं यार...आज मुझे पहली बार यह महसूस हुआ कि जब यही बात मैंने आज से तीस साल पहले अपने बाबूजी से गांव में कही थी तो उन्हें कैसा लगा रहा होगा।
समय का पहिया ही उल्टा घूमा है।
कल जिस जगह मेरे माता पिता खड़े थे उसी जगह आज हम खड़े हैं...कुछ भी तो नहीं बदला है यार...आंसुओ की भाषा तो वही है...
यह सुन कर मन ही मन बहू को कोसती... सिसकती उनकी पत्नी... किशन की माँ...बुक्का फाड़कर रोने लगी...
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