डॉ. अनिल जैन। पिछले तीन सप्ताह से केबिनेट की बैठक में अपने पक्ष में प्रस्ताव के आने के इंतजार में पथरा गयी अतिथि विद्वानों की आंखें..? हुजूर (उच्च शिक्षा मंत्री जयभान सिंह पवैया) न प्रस्ताव लाये और न सौगात दी। उल्टे वादा खिलाफी कर अपनी असलियत दिखा दी। अब ठगा सा महसूस कर रहे है अधिक पढे लिखे और इस व्यवस्था में मजबूर और मजदूरों से बदतर मजदूरी करते हुए यह अतिथि विद्वान। इनके दंश को दूर करने सरकार ने अपना अंश भी नहीं दिया। दो सप्ताह पहले जब उच्च न्यायालय ने सरकार को लताड़ लगायी कि वह सहायक प्राघ्यापक भर्ती में आयु या तो 28 करें या 40।
देश और प्रदेश के अभ्यार्थियों में निवास और जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं चलेगा। इस संवैधानिक हिदायत के बाद सरकार के स्वर बदल गये। केबिनेट की बैठक के बाद नरोत्तम मिश्रा ने मुख्यमंत्री की मंशा को स्पष्ट किया कि बाहरी प्रदेशों के अभ्यार्थियों से प्रदेश के युवाओं के हितों का अतिक्रमण नहीं होने दिया जायेगा। अधिकारी ऐसी नीति बनाये जिससे प्रदेश के अधिक अधिक युवा सरकारी नौकरी में आ जाये। यह जुमले बाजी थी या हकीकत.?
हकीकत मान बैठे थे लोग लेकिन वास्तव में ये मुख्यमंत्री की लफ्बाजी ही थी। जैसी की उनकी आदत में शुमार है। जुमलेबाजी कहने मुझे इसीलिये मजबूर होना पढ रहा है क्योंकि इसी आधार पर कि प्रदेश में चल रही सहायक प्राध्यापक की भर्ती में अधिक से अधिक प्रदेश के पढे लिखे युवा ही अपनी किस्मत आजमाये। इसीलिये सरकार ने प्रचारित किया कि वह उच्च न्यायालय के निर्णय के विरूद्ध उच्चतम न्यायलय जायेगी जिसकी तैयारी भी हो चुकी थी। यह इसीलिये दावे के साथ कहा जा सकता है कि लोक सेवा आयोग ने सरकार के ही इशारे पर विज्ञापन को स्थगित कर दिया था।
उच्च शिक्षा विभाग की फायलों से यह खबर पूरे प्रदेश में अखबारों और जिम्मेदारों की सभाओं से हवा की तरह फैली कि कोई भी अतिथि विद्वान अब व्यवस्था से बाहर नहीं होगा उन्हें 25 हजार के निश्चित मानदेय पर तीन साल के लिये नियमित किया जायेगा। हुजूर भी बोले लोकार्पण और भूमिपूजन में। घोषणावीर ने भी यह कहकर खूब तालियां बटोरी। उम्मीद और आशाओं से भरे अतिथि विद्वानों ने नये नये सपने बुने और अनिश्चितता की जिंदगी में कुछ समय के लिये स्थिरता से पारिवारिक परवरिश के ताने बाने भी बुने जाने लगे थे कि अचानक सरकार के यूटर्न से सुनहरी सुबह आने के पहले ही काली रात और महाकाली कर दी। तब जब सरकार के आदेश पर तीन-चार दिन पहले लोक सेवा आयोग ने भर्ती की अधिकतम आयु 44 करते हुए विज्ञापन के स्थगन को अलग करते हुए आवेदन भरने के लिंक खोल दीं।
यह वज्रपात से कम नहीं अतिथि विद्वानों पर। जहां सरकार संविदा स्वास्थ्य कर्मियों को उनकी हडताल के दबाव में आकर उन्हें नियमित करने का ऐलान कर चुकी है। शिक्षकों का संविलियन भी हडताल और महिलाओं द्वारा कराये गये मुंडन का दबाव था। इसी दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को बुलाकर उन्हें सौगात दी गयी। अतिथि विद्वानों ने भी हड़ताल के सभी कारनामें आपनाये। मुडन से लेकर उज्जैन के महाकाल मंदिर से भोपाल तक चिलचिलाती धूप में महिलाओं और युवाओं ने भोपाल तक पदयात्रा की फिर इनके साथ वादा खिलाफी क्यों..? हुजूर के रातों रात स्वर बदल गये..? कहने लगे पीएससी दीजिये। उल्टे जब अतिथि विद्वान वादाखिलाफी का कारण जानने उनके दरवाजे गये तो आंखें दिखाते हुए कहने लगे सरकार थोड़ी न गिरा दोगे तुम्हारी मांग पूरी नहीं करेंगे तो..? घोषणावीर भी मुखर हो गये कि जल्दी से जल्दी पीएससी पद भरे जायेंगे। हुजूर और घोषणावीर की घोषणाओं को अखबारों ने बड़े बड़े कालमों में जगह दी। उन्हें प्रकाशित किया।
क्या मीडिया की यह जबाबदेही नहीं बनती कि वह उनकी वादा खिलाफी को भी इतने ही कालमों में प्रकाशित करें। यह बात सही है कि अतिथि विद्वान अभी सरकार नहीं गिरा सकते लेकिन अगले चुनाव में उनका गणित जरूर बिगाड़ सकते है। खैर यहां शह और मात के खेल में अतिथि विद्वानों की कोई कसरत नहीं है। ये पढे लिखे और ज्यादा पढे लिखे उच्चशिक्षित लोग है शालीनता और संस्कार इनकी तहजीब है जिनकी तपस्या और ज्ञान से नागरिक यहां तक की सुसस्कारित नागरिक पैदा होते है। हूजूर भी कई बार बड़े बड़े मंचों पर बोल चुके है कि इनकी दम पर प्रदेश के महाविद्यालयों में विद्यार्थियों का परीक्षा परिणाम अच्छा बन रहा है नियमित प्राध्यापकों ने आलस्य और कामचोरी को अपने गले लगा लिया है।
खबर यह है कि अब अतिथि विद्वानों का सरकार पर जितना भरोसा नहीं अब इनका भरोसा न्यायपालिका पर ज्यादा है। लेकिन सरकार के खिलाफ फिर एक बार जोरदार मोर्चा खोलने की तैयारी अंदरूनी तोर पर चल रही है। लोकतंत्र में यदि सत्ताधारी दल इसी तरह वादा खिलाफी और अवसरवादी नीतियां अपनाती रही तो ऐसे में आमलोगों की लोकतंत्र पर भी आस्थायें कमजोर होने लगेंगी।