भोपाल। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने बड़े अरमानों के साथ महासचिव दीपक बावरिया को मप्र का प्रदेश प्रभारी बनाकर भेजा था। एआईसीसी को भरोसा था कि बावरिया मप्र में कांग्रेस को अनुशासित और एकजुट कर पाएंगे। इसके लिए उन्हे फ्रीहेंड भी दिया गया। बावरिया ने भी फ्री स्टाइल शुरूआत की लेकिन अब हालात बदल गए हैं। मप्र में बावरिया की पूछपरख ही नहीं रह गई। कुछ गिने चुने नेताओं को छोड़ दो तो कोई भी बावरिया को गंभीरता से नहीं ले रहा है।
कर्नाटक चुनाव में बिजी राहुल गांधी ने मप्र सहित 4 राज्यों में चुनावी तैयारियों के लिए अपने भरोसेमंद लोगों को भेजा है। दीपक बावरिया का नाम इसी लिस्ट में आता है। 09 सितंबर 2017 को जब प्रदेश प्रभारी के रुप में दीपक बावरिया को भेजा गया तो लगा पार्टी में अनुशासन के साथ ही एक मजबूत विपक्ष नजर आएगा। बावरिया भी इसी लाइन पर चले और उन्होंने पूरी ताकत के साथ यह बता दिया कि यदि कांग्रेस में रहना है तो अनुशासन और एकजुटता प्रदर्शित करनी होगी।
शुरूआत में बावरिया को काफी तवज्जो मिली। मप्र के दिग्गजों को छोड़कर पूरी कांग्रेस बावरिया के निर्देशों पर चलती नजर भी आई लेकिन यह सबकुछ बस कुछ ही दिनों तक चला। अब तो बावरिया की बैठकों में पार्टी के नेता ही नजर नहीं आ रहे है। न ही पार्टी आयोजन में शामिल हो रहे है। इसके साथ ही बावरिया के फैसलों को मानने के लिए भी कोई तैयार नहीं है। मीडिया को लेकर बेतुके बयान जारी कर चुके बावरिया अब चाहते हैं कि कांग्रेस को एकजुट करने में मीडिया उनकी मदद करे। दीपक बावरिया अब एक लाचार और बेबस प्रदेश प्रभारी बनकर रह गए हैं। पूरी पॉवर हमेशा की तरह दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया और क्षेत्रीय क्षत्रपों के पास आ गई है। सबकी अपनी अपनी कांग्रेस है और सब अपने अपने तरीके से चुनावी तैयारी कर रहे हैं।