नई दिल्ली। पिछले दिनों प्रकाश में आए सेना कल्याण निधि घोटाले में भारतीय सेना ने कर्नल रैंक के अधिकारी का कोर्टमार्शल कर दिया है। कर्नल पर आरोप है कि उन्होंने चुपके से एक ट्रस्ट बनाया और सेना कल्याण निधि के लिए आई मोटी रकम को अपने ट्रस्ट में जमा कर लिया। सेना की अदालत ने मामले में कर्नल रैंक के अधिकारी को दोषी पाते हुए एक महिला की जिंदगी भर की कमाई को छलपूर्वक हड़पने के आरोप में डिसमिस करने की सिफारिश की है और उसे तीन महीने के कठोर कारावास की सजा सुनाई है।
सूत्रों के मुताबिक, यह पूरा मामला तब शुरू हुआ जब 2010-11 में मेरी ए जोसफ 15 वर्षों तक नर्स रहकर अमेरिका से लौटीं। उस वक्त उन्होंने सेना मुख्यालय की कल्याण शाखा से मौत के बाद पूरी वसीयत सेना के लिए रखे जाने को लेकर संपर्क किया। रकम करीब 65 लाख रुपए थी। यह रकम जवानों और उनके परिवार वालों के लिए इस्तेमाल की जानी थी। सूत्रों ने बताया कि तब महिला से कहा गया कि उसके पास उसका धन सीधे तौर पर दान करने का विकल्प है और वसीयत लेने का कोई प्राावधान नहीं है। इस दौरान महिला का कल्याण शाखा के अधिकारी से परिचय हुआ। अधिकारी ने उसे मिलने के लिए अपने घर बुलाया और अपनी पत्नी से मिलवाया फिर अधिकारी ने एक चैरिटेबल ट्रस्ट गठित किया और उसमें महिला का पैसा जमा करा लिया।
अधिकारी की तरफ से भी ट्रस्ट में कुछ योगदान दिया गया। अधिकारी ने अपनी स्वर्गीय मां के नाम पर इस ट्रस्ट का नाम रखा। एक सार्वजनिक धर्मार्थ ट्रस्ट में ट्रस्टी बनने के लिए अधिकारी ने संबंधित सैन्य अधिकारियों से भी अनुमति नहीं ली। किसी भी सेना के अधिकारी को सेना के बाहर किसी भी संगठन या संघ के सदस्य बनने के लिए सेना की अनुमति लेना जरूरी है। ट्रस्ट बनने के कुछ महीनों के बाद महिला जोसफ ने सेना के मुख्यालय में धोखाधड़ी की शिकायत की।
80 वर्षीय बुजुर्ग महिला का कहना है कि वो अपनी पूरी कमाई सेना कल्याण निधि में दान करना चाहती थी, लेकिन अधिकारी ने कथित तौर पर महिला के पैसों से अपना एक ट्रस्ट बनाया और अपनी पत्नी को भी इसमें ट्रस्टी के रूप में रखा। अधिकारी को सेना अधिनियम के तहत धोखाधड़ी के इरादे का दोषी पाया गया हैं और दिल्ली कैंटोनमेंट के सेंट्रल ऑर्डिनेंस डिपो स्थित जनरल कोर्ट मार्शल के द्वारा सजा दी गई है। सजा पाने वाले अधिकारी के वकील रिटायर्ड कर्नल आईएस सिंह ने बताया कि उनके मुवक्किल ने किसी के साथ धोखाधड़ी का इरादा नहीं किया है।