नई दिल्ली। देश भर में कैश की किल्लत चालू हो चुकी है। सरकार का कहना है कि इसे सामान्य करने में एक हफ्ता लगेगा। यानी अगला एक हफ्ता देशवासियों पर भारी पड़ेगा। नागरिकों को एक बार फिर देश के लिए कैशलैस होना पड़ेगा। परेशानी वाली बात यह है कि इस बार भी कैश की किल्लत तब शुरू हुई है जबकि शादियों का सीजन शुरू हो गया है। बाजार में इन दिनों में सबसे ज्यादा कैशफ्लो आता है।
अब कहा जा रहा है कि FRDI (फाइनेंशियल रिजोल्यूशन एंड डिपाजिट इंश्योरेंस) बिल को लेकर आशंकाओं के चलते लोगों में बड़े नोटों (2000 और 500) को अपने पास होल्ड करके रख लिया है। सरकार ने देश के कई हिस्सों में नोट की किल्लत को खत्म करने के लिए सप्लाई और छपाई दोनों तेज कर दी है। वित्त मंत्रालय के प्रमुख आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल का दावा है कि हद से हद एक हफ्ते के भीतर हर जगह स्थिति पूरी तरह सामान्य हो जाएगी। ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कंफेडेरेशन (AIBOC) के दिल्ली क्षेत्र के प्रमुख रविंद्र गुप्ता का भी कहना है कि स्थिति को सामान्य होने में 7 से 10 दिन लग सकते हैं।
कैश की कमी नहीं है, मांग क्यों बढ़ गई
सान्याल ने कहा कि इस समय नगदी को लेकर जो हाय तौबा मची है वह पूरी तरह से चौंकाने वाली है क्योंकि रिजर्व बैंक के पास कैश की कोई कमी नहीं है। सान्याल के मुताबिक सरकार इस बात की गहराई से जांच कर रही है कि अचानक बिना किसी ठोस कारण कैश की मांग इतनी ज्यादा कैसे बढ़ गई। सान्याल ने बताया कि इस दिक्कत की शुरुआत पहले कर्नाटक और तेलंगाना से शुरू हुई और फिर देश के कुछ दूसरे हिस्सों में फैल गई। कर्नाटक में अगले महीने चुनाव होने हैं।
नगदी उतार दी तो महंगाई बढ़ जाएगी
सान्याल ने कुछ जगहों पर कैश की मामूली दिक्कत की तुलना नोटबंदी के दिनों से करने को गलत बताया, वो इसलिए क्योंकि सरकार के पास अब किसी भी स्थिति से निपटने के लिए रिजर्व में पर्याप्त कैश मौजूद है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर कभी कभार किसी इलाके में कुछ खास मूल्य के नोटों की कमी हो जाती है। अगर जरूरत से ज्यादा नकदी बाजार में उतार दी जाए तो उसे महंगाई पर असर पड़ता है।
सरकार को बदनाम करने लोगों ने नोट दबा लिए
सान्याल के मुताबिक इस वक्त सरकार के लिए अच्छी बात यह है कि महंगाई काबू में है इसीलिए और नोट छाप कर बाजार में उतारने में सरकार को कोई दिक्कत नहीं है। नकदी से निपटने के लिए वित्त मंत्रालय ने एक टास्क फोर्स बनाई है जो स्थिति की निगरानी कर रहा है और कुछ ही दिनों के भीतर स्थिति पूरी तरह सामान्य हो जाएगी। वित्त मंत्रालय के प्रमुख आर्थिक सलाहकार ने कहा कि चुनाव इसकी सिर्फ एक वजह हो सकती है, लेकिन साथ में कुछ ऐसी बातें जरूर हैं जिसकी वजह से अचानक नगदी की इतनी मांग बढ़ी। जब उनसे पूछा गया कि क्या इसके पीछे जानबूझकर की गई साजिश भी हो सकती है तो उन्होंने इसका सीधा जवाब नहीं दिया। उन्होंने बस यही कहा कि सरकार कारणों का पता करने के लिए जुट चुकी है। सूत्रों के मुताबिक सरकार का यह मानना है कि इस वक्त नोट को लेकर जो दिक्कत हो रही है उसके पीछे सरकार को बदनाम करने की साजिश भी हो सकती है।
बैंक घोटालों के कारण नहीं आई किल्लत
सान्याल ने इस बात से इंकार किया कि एक के बाद एक बैंक घोटालों की वजह से लोगों का भरोसा बैंकों को लेकर कम हो रहा है. उन्होंने कहा कि घोटाले पहले भी होते थे लेकिन फर्क इतना है कि यह सरकार इन घोटालों की जड़ में जाकर उन्हें सामने ला रही है और उन्हें ठीक करने के लिए ठोस कदम उठा रही है. यह पूछे जाने पर कि क्या नोट की कमी के पीछे लोगों के मन में एफआरडीआई बिल को लेकर आशंका भी हो सकती है उन्होंने कहा कि इसको लेकर सरकार कई बार अपनी बात साफ कर चुकी है कि बैंकों में लोगों का पैसा पूरी तरह से सुरक्षित है और किसी को इस बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.
बड़े नोट ज्यादा होने के कारण आई है किल्लत
वहीं AIBOC के दिल्ली क्षेत्र के प्रमुख गुप्ता का मानना है कि नकदी की कमी प्रमुख तौर पर बड़े मूल्य वाले नोटों पर निर्भर रहने की वजह से है. देश में जितनी भी करंसी चलन में है, उनमें से 90 फीसदी 2000 और 500 रुपए के नोटों में है. गुप्ता 2000 के नोटों की जमाखोरी होने की संभावना से इंकार नहीं करते. कुछ महीने पहले ही RBI की ओर से 2000 के नोटों को छापना बंद किए जाने के बाद से इस मूल्य के नोटों की जमाखोरी बढ़ी है. इसके अलावा राज्यों को उनके अनुपात के हिसाब से समान रूप से कैश वितरित नहीं किया जा रहा, इस वजह से भी कुछ राज्यों में कैश की किल्लत महसूस की जा रही है.