भोपाल। ‘द लेंसेट’ एक स्वतंत्र इंटरनेशनल वीकली जनरल मेडिसिन जर्नल की रिपोर्ट में मध्यप्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाएं दुनिया भर की तमाम घटिया व्यवस्थाओं में से एक हैं। यहां 100 में से मौत 35 लोगों को सही डॉक्टर का परामर्श हासिल हो पाता है। प्रत्येक 1 लाख मरीजों में से 776 तो इसलिए मर जाते हैं क्योंकि उन्हे समय पर इलाज ही मुहैया नहीं होता। यदि डॉक्टर उपलब्ध होता और वो इलाज शुरू कर देता तो ऐसे लोगों को बचाया जा सकता है। यह वह रिपोर्ट है जो उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर तैयार की गई है। जमीनी हकीकत क्या है यह मध्यप्रदेश के 7.5 करोड़ लोग बहुत बेहतर जानते हैं। लैंसेट ने मप्र की स्वास्थ्य सेवाओं को दुनिया की तीसरी सबसे घटिया सरकारी स्वास्थ्य सेवा बताया है।
37 प्रतिशत लोगों को गलत दवाएं दे देते हैं डॉक्टर
रिपोर्ट के अनुसार प्रति एक लाख में से 37678 लोग बीमारी का सही इलाज नहीं मिल पाने के कारण अपने जीवन को विकलांग की तरह (डिसेबिलिटी-एडजस्टेड लाइफ ईयर) जीने को मजबूर हो जाते हैं। दुनियाभर में विख्यात इंग्लैंड के मेडिकल रिसर्च जर्नल लैंसेट के ग्लोबल बर्डन ऑफ डेथ (जीबीडी) स्टडी में मध्यप्रदेश की स्थिति दुनिया के सबसे पिछड़े इलाकों से महज दो पायदान ही बेहतर है।
दुनिया की तीसरी सबसे घटिया सरकारी स्वास्थ्य सेवा
लैंसेट की ताजा सर्वे के आधार पर तैयार हेल्थकेयर एक्सेस एंड क्वालिटी इंडेक्स (एचएक्यू) मध्यप्रदेश को 100 में से 35.9-44.8 पर्सेंटाइल दिए गए हैं। जबकि भारत को ओवरऑल 41 पर्सेंटाइल दिए गए हैं। इसका मतलब यह है कि दुनियाभर में स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की पहुंच और गुणवत्ता में हमारी स्थिति दुनिया में नीचे से तीसरे पायदान और ऊपर से सातवें पायदान पर है।
क्यों अहम है लैंसेट का यह सर्वे
‘द लेंसेट’ एक स्वतंत्र इंटरनेशनल वीकली जनरल मेडिसिन जर्नल है, जो लगभग 200 साल पुराना है। सामाजिक बदलाव, लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव के लिए मेडिकल रिसर्च और विज्ञान के नए आयामों को व्यापक रूप से उपलब्ध कराने का काम करता है। लैंसेट ने इस एएचक्यू इंडैक्स और जीबीडी रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 14 बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं और मौत का कारण बनने वाली उन 32 प्रकार की बीमारियों को आधार बनाया है, ये ऐसी बीमारियां हैं, जिनका इलाज अब पूरी तरह संभव है, और इलाज के जरिये लोगों की जान बचाई जा सकती है।
मप्र की जैसी घटिया स्वास्थ्य सेवाएं इन राज्यों में भी
मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश
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