राकेश दुबे@प्रतिदिन। अब एक नया विवाद पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम के आमन्त्रण को स्वीकार करने को लेकर शुरू हुआ है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता सी के जाफर शरीफ ने तो बकायदा चिठ्ठी लिखकर प्रणब मुखर्जी से इस कार्यक्रम में न जाने की दरख्वास्त की है। इस कार्यक्रम में जाने, न जाने के अलग-अलग अर्थ हो सकते हैं, दृष्टिकोण तो कई सारे। प्रश्न यह है कि कांग्रेस शासित केंद्र सरकारें रही तब और अब भी कोई एक जाँच संघ के विपरीत प्रमाणित हुई है। शायद नही।
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने अपना पक्ष इस यात्रा को लेकर कुछ यूँ रखा है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नागपुर स्थित मुख्यालय में होने वाले एक कार्यक्रम में शामिल होने का निमंत्रण स्वीकार लिया है और इसमें कुछ भी 'आश्चर्यजनक' नहीं है। श्री मुखर्जी 'तृतीय वर्ष वर्ग' के समापन समारोह में मुख्य अतिथि होंगे और 'स्वयंसेवकों को संबोधित करेंगे।'आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत समारोह के मुख्य वक्ता होंगे। स्पष्टीकरणके अनुसार, "जो भी संघ को जानते हैं या समझते हैं, यह उनके लिए आश्चर्यजनक या नया नहीं है। यह उनके लिए सामान्य है, क्योंकि आरएसएस प्रसिद्ध लोगों और सामाजिक सेवा से जुड़े लोगों को बुलाता रहता है। इस बार, आरएसएस ने डॉ. प्रणब मुखर्जी को निमंत्रण दिया है और यह उनकी महानता है कि उन्होंने यह निमंत्रण स्वीकार किया है।"
जहाँ तक प्रणब मुखर्जी का कांग्रेस में रहने का प्रश्न है, यह तथ्य सर्व ज्ञात है कि 2012 में राष्ट्रपति बनने से पहले दशकों तक कांग्रेस से जुड़े रहे थे। अब भी वे वैचारिक रूप से कांग्रेस के पक्षधर हैं। इसका यह अर्थ लगाना कहाँ तक तर्क सम्मत है कि वे किसी अन्य विचार धारा के कार्यक्रम में शामिल न हो। ऐसी अपेक्षा भी निरर्थक है।
संघ की ओर बार-बार यह दोहराव कि महात्मा गांधी ने वर्धा स्थित शिविर का दौरा किया था और बाद में कहा था कि वह संगठन के 'कड़े अनुशासन, सादगी और भेदभाव की अनुपस्थिति' से प्रभावित हुए थे। पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन, समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण, फील्ड मार्शल के.एम. करियप्पा समेत अन्य हस्तियां भी आरएसएस के समारोह में भाग ले चुकी हैं। "भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान आरएसएस की भूमिका को देखते हुए इसे 1963 में गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था।" से ज्यादा महत्वपूर्ण समतावादी समाज के निर्माण में संघ का योगदान होना है।
बहस शुरू हुई है तो नतीजा आना चाहिए। कांग्रेस को भी यह स्पष्ट करना चाहिए की उसकी अपेक्षा कहाँ तक उचित है? और संघ को खुलकर बताना चाहिए उसका सामजिक सरोकार अब तक क्यों उपेक्षित समझा जाता है ? 92 वर्ष कम नहीं होते है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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